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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्र३ www. kobatirth.org शाररिस्थान भाषाटीकासमेव । 5 श्लेष्मप्रकृतयस्तुल्वास्तथा सिंहाऽश्वगोवृषैः॥ अर्थ - कफ सोमस्वरूप होता है, इस लिये कफ प्रकृतिवाला मनुष्य, शांत स्वभाव होता है। इसके संधि, अस्थि और मांस गूढ, सचिक्कण और दृढ होते हैं इसको भूख प्या स, दुख, क्लेश और गरमी सताते हैं । यह बुद्विमान सतोगुणविशिष्ठ और सत्यप्रतिज्ञ होता है । इसमें प्रियंगु, दूर्वा, शरकांड, शस्त्र, गोरोचन, कमल वा सुवर्ण आदि जुदे जुदे वर्णों के मनुष्य होते हैं । इनकी लंबी बाहु, मोटा और चौड़ा वक्ष:स्थल, बडा ललाट, सघन और नीले केश तथा कोमल अंग होते हैं । इसका शरीर बड़ा सुंदर और सुडौल होता है । यह बहुत ओज, रतिरस, शुक्र पुत्र और भृत्यों से युक्त होता है, धर्मात्मा होता है, किसी से निष्ठुर वचन नहीं कहता है, वरे को कभी नहीं भूलता है, बहुत काढतक गुप्त भाव से रखता है। यह मतवाले हाथी की तरह घूमता हुआ चलता है, इसका शब्द मेघकी गर्जन वा मृदंग के शब्द वा सिंहध्वनि के सदृश होता है यह स्मृतिमान, उद्योगी, और विनीत होता है, वाल्यावस्था में भी न रोता न चंचल होता है । यह तिक्त, कषाय, केटु, उष्ण, रूक्ष तथा थोड़ा भोजन करता है तथापि बलवान् होता है। इसके नेत्रों के प्रांत ला वर्ण के होते हैं तथा विशाल, दीर्घ, और वहु पक्ष्मयुक्त होते हैं, इसके नेत्रों के श्वेत और कृष्णमंडल बहुत सुंदर होते हैं। इसके वाक्य, क्रोध, पान, भोजन, चेष्टा कम होते [ ३०१३ ] हैं यह दीर्घायु, अत्यंतधनी, दूरदर्शी, अल्पभाषी, दाता, श्रद्धावान्, गंभीर स्वभाव, उच्चाशय, क्षमावान्, आर्य, निद्रालु, दीर्घसूत्री ( देर में काम करनेवाला ) कृतज्ञ, सरल प्रकृति, पंडित, सौभाग्यशाली, सलज्ज अपने से बड़ों का सेवक, दृढ मित्रतायुक्त होता है । इसको स्वप्न में कमल और पक्षियों से युक्त जलाशय तथा मेघ दिखाई देते हैं । इसका स्वभाव ब्रह्मा, रुद्र, इन्द्र, वरुण, गरुड, हंस, ऐरावत हाथी, सिंह, अश्व, गौ वा बैल के सदृश होता है । ये सब कफप्रकृति वालों के लक्षण हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्वन्द्वप्रकृति के लक्षण | प्रकृतीर्द्वय सर्वोत्था द्वंद्वसर्वगुणोदये । अर्थ- वातादि दो दो दोषों के मिलित लक्षण दिखाई देने से द्वन्द्वप्रकृति होती है और तीनों दोषों के मिलित लक्षण हों तो सर्व दोष प्रकृति होती है । सत्वादि प्रकृतिका निरूपण । शौचास्तिक्यादिभिश्चैवं गुणैर्गुणमयीर्वदेत् ॥ 1.5 अर्थ- वातादि सात प्रकृतियों के संदृश शौच, आस्तिक्य औरं शुक्लधर्म की रुचिकै अनुसार सत्वादि गुणों के द्वारा सत्वादि सात ही प्रकृति होती हैं और जाति, देश, काल, वय, बल, और प्रकृति ये सात इन के अधिष्ठान हैं सत्वादि प्रकृतियों के नाम ये हैं यथा -- सत्वप्रकृति, रजःप्रकृति तमः प्रकृति, सत्वरजः प्रकृति, सत्वतमः प्रकृति, रजस्तमः प्रकृति और सत्वरजस्तमः प्रकृति । सत्वादि प्रकृतियों का ज्ञान । वयस्त्वाषाडशाद्वांल तत्र धात्विंद्वियौजसाम् For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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