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शारीरस्थान भाषाटीकासमेत ।
नासागत अवेध्यसिरा। शब्द बोधनी दो सिरा जिन से शब्द का
नासायां चतुरुत्तरा ॥ २८ ॥ । विशतिर्गधवेदिन्यौतासामेकांच तालुगाम् ।
ज्ञान होता है अवेध्य है तथा कनपटी की ___ अर्थ-नासिका में 28 सिरा हैं. इनमें | दो सिरा भी अवेध्य हैं । से दो गंधवेदिनी सिरा ( जिनसे गंधका मू गत अवेध्वसिंग। ज्ञान होता है ) और एक तालुगत सिरा
__ मूर्ध्नि द्वादश तत्र तु ।३। अवध्यहैं गयदास नासिका में १६ सिरा कहते
एकैकां पृथगुत्क्षेपसीमंताधिपतिस्थिताम् । है इनमें से पांचको अवध्य बताते हैं।
___ अर्थ-मूञ में १२ सिरा होती हैं, इन
में से उत्क्षेपनामक मर्म की दो सिरा, पांच नेत्रगत अवेध्यसिरा। षट्रपचाशन्नयनयोनिमेषोन्मेषकर्मणी। २९ ।
सीमंतों में पांच, और आधिपति नामक मर्म वे द्वे अपांगयोर्दै च तासां षडिति वर्जयेत् । की एक, इस तरह ये आठ सिरा अवेध्यहैं। ___ अर्थ नेत्रों में ५६ सिरा है, इनमें से / अवेध्यसिराओं का संक्षिप्तवर्णन । निमेष ( आंख बन्द करने वाली ) की दो, इत्यवेध्याविभागार्थ प्रत्यंग बर्णिताः सिरा। और उन्मेष ( खोलना ) की दो तथा अपां
अवेध्यास्तत्र कात्स्येन देहेऽष्टानवतिस्तथा।
संकीर्णा ग्रथिताःक्षुद्रावकाःसंधिषुचाश्रिताः ग की दो, ये छः सिरा अवेध्य हैं । सुश्रुत
- अर्थ-अवेध्य सिराओं का ज्ञान कराने नेत्रों में ३८ और गयदास २४ सिरा बताते । हैं जिनमें से अपांगकी दो अवेध्य कहते हैं।
के लिये प्रत्येक अंगकी. संपूर्ण सिरा और ललाटगत अवेध्यसिरा।
उनमें से अवेध्य सिराओं का वर्णन किया नासानेत्राश्रिताः पष्ठिर्ललाटे स्थपनीश्रिताम् गया है । इन सब सिराओं में ९८ सिरा तोकां द्वौ तथाऽऽवौं चतस्रश्च कचांतगाः
अवेध्य हैं । अब यह जानना चाहिये कि सत्तेव बर्जयेत्तासाम्। अर्थ-नासिका और नेत्रोंमें जो ८०
ये ९८ सिरा ही अवेध्य नहीं हैं किन्तु जो सिरा कही गई है उनमें से ६. सिरा ललाट
आपस में एक दूसरे से बंधी हुई हैं, प्रथितहैं,
जो छोटी हैं, टेढी हैं और जो अस्थि की में है । इनमें से स्थपनी नाम मर्म में आश्रित एक सिरा अवेध्य होती है । तथा । संधियों में हैं वे भी अवध्य हैं । आवर्तनामक दो मर्मों में दो तथा केशांतस्थ सिराओं से रक्तादि का बहना । दो सिरा अवेध्य हैं ऐसे ललाट की सात तासां शतानां सप्तानांपादोऽत्रं वहते पृथकू सिरा अवैध्य हैं।
वातपत्तिकफैर्जुष्टं शुद्धं चैव स्थिता मलाः ॥
शरीरमनुगृहणंति पडियत्यन्यथा पुनः। कानकी अवेध्य सिरा।
अर्थ-ये जो ७०० सिरा कही गई हैं कर्णयोः षोडशाऽत्र तु । द्वे शब्दवोधने शखौ सिरास्ता एव चाश्रिताः ।
इनमें से चौथाई अर्थात् १७५ सिराओं से शंखसंधिगे तासाम्।
बातदूषित रक्त बहता है। १७५ से पित्तदूअर्थ-कान में १६ सिरा हैं, इनमें से | षित ,१७५ से कफदूषित और १७५ से
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