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शारीरस्थान भाषाटीकासमेत ।
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टे होते हैं और ज्यों ज्यों बढतेहैं उनके अग्रभाग | शाखागतअवेध्य सिराओंकावर्णन । सूक्ष्म होते चले जाते हैं और उनमें से पतली | तत्रैकैकं च शाखायां शतं तस्मिन्न बेधयेत्। पतली छोटी असंख्य रेखा निकल निकलक- | सिरां जालंधरां नाम तिस्रश्चाभ्यतराश्रिता र चारों ओर फैल जाती हैं इसी तरह शरीर अर्थ-इन सातसौ सिराओं में से हर एमें सिरा भी जडमें स्थूल होती है और ज्यों | क हाथ पांवमें सौ सौ सिरा है इसलिये चारों ज्यों फैलती है उनके अग्रभाग सूक्ष्मातिसूक्ष्म
हाथ पांवकी चारसौ सिरा हैं। इनमेंसे हरएक होते हुए अनेक भागोंमें विभक्त हो जाते है ।
शाखामें एक जालंधरा नामक सिरा है यह इन स्थूल सिराओं में होकर आहारज रस जालोंको धारण करती है, और तीन सिरा शीघ्र भीतर घुमता चला जाता है और फि- 1 भीतर हैं जिन्हें अंतर्मुखा कहते है । इन चार सूक्ष्मसिरा उस रसको रोमरोममें पहुंचाकर | र सिराओं को बेधना न चाहिये । इसतरह उनकी पुष्टि करती है । ये सब सिरा गिनती | चारों हाथपांवोंमें १६ सि। अवेध्य है ॥ में सातसौ होती है।
लियों में पन्द्रह । पांव के तलुए में दस, गुल्फ में दस, पांव के ऊपर दस, कूर्चा में दस, जंघा में वीस, जानु में, और ऊरु में वसि । सब मिलाकर एक सक्थि में १०० सौ हुई। चारों हाथ पांवों में चार सौ हुई । मेद में एक, सीविनी में एक, अंडकोष में दो, स्फिक । में दस, गुदा में तीन, वस्तिके ऊपर के भाग में दो, कोष्ठ में चार, नाभि में एक, हृदय में एक, आमाशय में एक, यकृत प्लीहा और उन्दुक मैं छः, पीठ में चार, पसलियों में दस वक्षस्थल में दस, कंधों में चार, सव मिलाकर साठ हुई । किसी किसी आचार्य ने मध्य भाग में ६६ लिखी हैं । ग्रीवा में दस, गंडस्थल में आठ, टोडी के चारों ओर आठ, का. फलक में एक, जिह्वा की मूर्धा में एक, कंठ में दो,ललाट में दो, ताल में दो, ओष्ठ में दो कानों में दो, नासिका में दो। इस तरह कंठ से ऊपर चालीत हैं । शाखा, मध्य भाग और ऊर्धभाग सब मिलाकर पुरुषों की ५०० पेशी हुई।
त्रियों के बील मांसपेशी अधिक होती है, दशाधिकाः स्युः स्तनयोर्दश योनौ च योषिताम् । प्रत्येकं स्तनयोः पंच तासां वृद्धिस्तु यौवने । योन्यंतराश्रिते द्वे तु द्वे च वने मुखाश्रिते । गर्भमार्गाश्रयास्तिस्रा यत्र गर्भावतिष्ठते । शंखनाभ्याकृतियोनिस्ठ्यावर्ता जायते स्त्रियाः। तस्यास्तृतीयआवर्ते रोहितस्याकृतिर्भवेत् । गर्भशय्याऽथ तिस्रश्च भवेयः संप्र. वेशिकाः । शुक्रस्य चार्तवस्यैवं पेशीस्तत्र विदो विदुः । अर्थात् स्त्रियों के दस पेशी स्तनों में और दस योनिमें अधिक होती है इनमें से पांच पांच हरएक स्तन में होती है। ये वचोंके दिखाई नहीं देतीं, तरुण होने पर दिखाई देती हैं । योनि के भीतरके भाग में दो, औरतों गोलाकार योनि के मुख में होती हैं । गर्भमार्ग में जहां गर्भ रहता है। स्त्रियों की यो शंखनाभि के सदृश तीन आवर्त वाली होती है, इसके तीसरे आवर्त में रोहू मछली की सी आकृति होती है इसी में गर्भ की शय्या होती है, इस जगह तीन पशियां होती है शुक्र और आर्तव के प्रवेश मार्ग में तीन पेशियां होती है।
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