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________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org शारीरस्थान भाषाटीकासमेत । [२८३] अस्थियों की संख्या। ____ अर्थ-दांत और नखों की हड्डियां मिअस्मां शतानि षष्टिश्च त्रीणि दंतनखैःसह ।। लाकर हड्डियोंकी संख्या ३६० होती है। ये छः कूर्चा होती हैं इनका आकार कूची के सदृश होता है । सीवन सात हैं एक मेल्में, एक जिह्वा में और पांच सिरमें । पृष्ठवंशेाभयतश्चतस्रो मांसरजवः । वाह्य के अंतरे द्वे च गुल्फे जानुनि घंक्षणे । विकेशिरसिकक्षायां कूपरे मणिबंधने । अस्मां भवेयुः संघाता अमीत्वत्र चतुर्दश । अर्थात् मांसकी चार बडी बडी रज्जु अर्थात् रस्सियां हैं, ये पीठ के बांसे के दोनों ओर हैं, इनमें से दो बाहर और दो भीतर होती हैं इनसे मांसकी पेशियां बंधी होती हैं। अस्थियों के संघात १४ हैं इनमें से एक टकना, एक जांघ और एक वंक्षण में इसी तरह दूसरे पांवके टकने जांघ और वंक्षण में एक एक, दोनों पांवोंके मिलाकर छः फिर दोनों हाथों में भी छः है एक एक दोनों कक्षा, दोनों कोहनी और दोनों पहुचों में तथा एकत्रिक और एक सिरमें सव मिलाकर १४ हुए । वाहु और ग्रीवा की तीन अस्थियों के संघात का नाम त्रिक है । सीमंता पंच मूर्ध्नि स्युर्गुल्फादिष्वस्थि संघवत् अर्थात् पांच सीमंत तो सिरमें है शेष तेरह अस्थिसंघात की तरह दो दोनों कक्षा में, दो दोनों कोहनी में, दो दोनों मणिबंध, दो दोनों टकनों में,दो दोनों वक्षण में, दो दोनों जानु में और एक त्रिक में है । भोजसंहिता में सीमंत के लक्षण लिखे हैं कि संघाताः संचिता यैस्तु सीमंतांस्तान्याचक्ष्महे । अर्थात् जिस वस्तु से अस्थिसंघात चिपटे रहते हैं उसे सीमंत कहते हैं, अंग्रेजी में इसके लिये सीमैन्ट (Cement ) शब्द है और यह शब्द सीमंत का विगडा हुआ मालूम होता है । कोई कोई आचार्य अस्थिसंघात की संख्या १८ . बताते हैं अर्थात् पूर्वोक्त १४ तथा श्रोणिकांड के ऊपर एफ, वक्षःस्थल में एक, उदरऔर हृदय की संधि में एक, और अंसकूट के ऊपर एक इस तरह सब मिलाकर १८ हैं। + पंचपादनखासक्थि प्रत्यंगुल्यस्थिकत्रयम् । एवंपंचदशैतानि शलाकाः पंच तु स्मृताः । एकस्तत्प्रतिबंधश्च जंघायां कूर्चगुल्फके । वेद्वे इति षडेवस्युः पार्णारौ च जानुनि । एकैकमित्येकसविन पंचत्रिंशत्तथा परे । भुजयोः सक्नितुल्यानि भेदा एषां तु नामतः । पाणिःस्यात् पादवत्तत्र हस्तमूलं च पाणिवत् । मणिबंधो गुल्फतुल्यः कूर्चतुल्यो द्वयेऽपिच । प्रकोष्ठौ जंघया तुल्यौ जानुवत् कूर्परा भवेत् । ऊरुवद्वाहपृष्ठं स्यादतराधौ तु पार्श्वकाः । चतुर्विशतिरेतेषु फलकान्यर्बुदानि च । तावति पृष्ठे त्रिंशतस्युरुरस्यष्टौ त्रिभागके । एकैकं स्यादक्षकयोरंसयोस्तत्फलाख्ययोः । नितंबे तु द्वे भवेतां शतमेतत्सविंशति। गडयोः कर्णयोः द्वे द्वे शखयो चाथ तालुनि । तथाजत्रुण्यकमेकं ग्रीवायां तु त्रयोदश । कंठनाड्यां तु चत्वारि हनुबंध द्वयं भवेत्। द्वात्रिंशदेव दंताःस्युस्तत्संख्योलूखलानि च । त्रीणि घ्राणे षट् शिरसि शतमूर्ध्वमितिस्मृतम् । शाखांतराध्यूलभेदादेवं पष्टिशतत्रयम् । कपाल रुचकं चैव तरुणं वलयं तथा । नलकं पंचधेति स्युनितंबेगडजानुनि । तालमध्ये शिरस्यसे कपालाख्यानि निर्दिशेत् । दशना रुचकाख्याः स्युर्घाणे कर्णेक्षि कोशके। तरुणा नि पृष्ठपावें चरणे वलयानि तु । शेषाणि नलकाख्यानि समाख्याताकृतानि च । अर्थात एक पांव में ५ नख, प्रत्येक उंगली में तीन तीन के हिसाब से १५, तलुए में शलाका नामकी ५, इनको वांधनेवाली १, जंघामें २, कूर्चमे दो और गुल्फ में दो, पार्णि में एक For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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