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शारीरस्थान भाषाटीकासमेत।
(२७५)
अटक गया हो तो वाहु काटकर निकाल | को भी मारताहै, परन्तु मृत गर्भकी क्षण ले । जो पेटके फूलने से रुक गया हो तो भर भी उपेक्षा न करे, झटपट काटकर पेट को चीर कर सब आंतों को बाहर निकाल देना चाहिये । निकालकर फिर गर्भ को खींचले। जो कमर । उपेक्षाके योग्य मूढगर्भा । की ओर से अटक गया हो तो कमर की योनिसंवरणभ्रंशमकल्लश्वासपीडिताम्। हड्डियों को काटकर बाहर निकाल ले फिर
पूत्युद्गारां हिमांगीं च मूढगर्भी परित्यजेत् ॥
अथापतंतीमपरां पातयत्पूर्ववद्भिषक् । गर्भ को खींचले।
एवं निर्हतशल्यां तु सिंचेदुष्णम वारिणा ॥ ___ मूढगर्भकी सामान्य चिकित्सा | दद्यादभ्यक्तव्हायै योनौ स्नेहपिचुं ततः। यद्यद्वायुवशादंग सज्जेदर्भस्थ खण्डशः। योनिर्मदुर्भपेत्तेन शूलं चाऽस्याः प्रशाम्यति तत्तच्छित्वा हरेत्सम्यग्रक्षेन्नारीच यत्नतः ॥ अर्थ-ऐसी मूढ गर्भा स्त्री की चिकित्सा गर्भस्य हिगति चित्रां करोतिविगुणोऽनिलः न करें जिसकी योनि का मार्ग आच्छादित तत्राऽनल्पमतिस्तस्मादवस्थापेक्षमाचरेत् । यो जिसकी योनिशान से अर्थ-मूढगर्भका जो जो अंग वायुके
चलित होगई हो, जिसको मकल रोग हो वेगसे अटक जाताहै उसी उस अंगको थोडा
गयाहो, जो श्वास रोगसे पीडित हो, जिसको थोडा काटकर निकालना उचितहै । थोडे
सडीहुई डकार आतीहो, जिसका शरीर ठंडा थोडे निकालने का यह कारणहै कि एक
पडगया हो । जरायु के न निकलने पर साथ गर्भका सब शरीर छेदन करनेसे शस्त्र
उसके निकालने के लिये पूर्ववत् चिकित्सा के निपातसे मूढगर्भा नारी का भी जोखम
करे । गर्भ और जरायु के बाहर निकलनेपर रहताहै, इसलिये थोडा थोडा ही काटना
स्त्रीका गरम जलसे परिपक करै । तदनंतर चाहिये और इस बातकी विशेष सावधानी
तेल लगाकर स्नेहमें भीगीहुई बत्ती योनि में रक्खे कि स्त्री का कोई अंग न कटने पावै ।
रक्खे । इससे योनि कोमल होजाती है और __ प्रकुपित हुआ वायु गर्भकी गति अर्थात्
दर्द भी शांत होजाताहै। अवस्थिति अनेक प्रकार की करताहै इसलिये
स्नानके पीछे चूर्णादि का प्रयोग। अत्यन्त बुद्धिमान् वैद्यको उचितहै कि गर्भ की गति पर विचार करके शस्त्रको चलावै ।
दीप्यकातिविषारास्नाहिंग्वेलापंचकोलकान्
चूर्ण स्नेहेन कल्कं बा काथंवा पाययेत्सतः ॥ . जीवित गर्भके छेदन का निषेध ।। कटुकातिविषापाठाशाकंत्वग्घिगुतेजिनीः । छिद्यादुर्भन जीवंतं मातरं स हि मारयेत् । तद्वश्च दोषस्यंदार्थ वेदनोपशमाय च ॥ ४२ ॥ सहात्मनांनचोपेक्ष्यःक्षणमप्यस्तजीवितः॥
त्रिरात्रमेवं सप्ताहं स्नेहमेबततः पिवेत् । __ अर्थ-जीवित गर्भका कदापि छेदन न
सायं पिबेदरिष्टं वा तथा सुकृतमासवम् ॥
| शिरीषककुभक्काथपिचून् योनौ विनिक्षिपेत् करना चाहिये, क्योंकि अस्त्रके प्रयोगसे छिन्न
उपद्रवाश्च येऽन्ये स्युस्तान् यथाहुआ गर्भ अपने को भी मारताहै और माता
स्वमुपाचरेत् ॥ ४४ ॥
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