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(१७४)
अष्टांगहृदये।
अ२.
अथापृच्छयेश्वरं वैद्योयत्नेनाशुतमाहरेत् ॥ | विष्कंभौ नाम तो मूढी शस्त्रदारणमर्हतः । हस्तमभ्यज्ययोनिच साज्यशाल्मलिपिच्छया मण्डलांगुलिशस्त्राभ्यां तत्र कर्म प्रशस्यते ॥ हस्तेन शक्य तेनैव
वृद्धिपत्रं हि तीक्ष्णाग्रं न योनाववचारयेत् । गात्रं च विषमं स्थितम् ॥ २७॥
अर्थ-जो गर्भ हाथ अथवा पांव अथवा मांछनोत्पीडसपीड विक्षपोत्क्षेपणादिभिः ।
सिर से योनि के पास आकर टेढा पडजाय अनुलोम्प समाकर्षेद्यौनिं प्रत्यार्जवागतम् ॥ ___ अर्थ-जिस स्त्री के उदर के भीतर गर्भ |
अथवा गर्भ का एक पांव योनि से बाहर भर गया हो उसके सुहाते हुए थोडे गरम
निकल आवै, दूसरा गर्भिणी की गुदा की जलके छींटे मारकर गुड, किण्व और सेंधा
ओर चलाजाय तो ऐसे गर्मों को विष्कंभ नमक पीसकर योनि पर लेप करे । और |
| नामक मूढगर्भ कहते हैं । ये हाथसे खींचने
के अयोग्य होते हैं इसलिये शस्त्र से काटे सेमरका गोंद और अलसी इनको पीसकर
जाते हैं। घी में मिलाकर बारबार योनि के भीतर
___विष्कंभ नामक मूढ गर्भ को काटने के भरदे । तथा मूढगर्भ के निकालने के लिये |
लिये मंडलाय और अंगुलिशस्त्र काम में सिद्ध मंत्र तथा जरायुके गिराने के प्रकरण
लाये जाते हैं । वृद्धि पत्र नामक शस्त्रका में जो जो मंत्र लिखेगये हैं उनका पाठ
अग्रभाग बडा पैना होता है इसलिये वह करै । इन उपायों. के करने पर भी जो
योनि के भीतर नहीं चलाया जाता है । मुढ गर्भ वाहर न निकले तो राजा की आज्ञा लेकर घृत में मिले हुए सेमरके गोंद
गर्भ की छेदन विधि । को वैद्य योनि और अपने हाथ में लगाकर
पूर्व शिरःकपालानिदारयित्वा विशोधयेत्॥
कक्षोरस्तालुचिबुके प्रदेशेऽन्यतमे ततः । बहुत सावधानी से योनि के भीतर से मृत
समालंव्य दृढं कर्षेत्कुशलोगर्भशकुना ३२॥ गर्भ को खींचले । यदि गर्भ का देह विषम अभिन्नशिरस त्वक्षिकूटयोर्गण्डयोरपि । रीति से पडा हो तो आंछन ( लंबा करके)
पाहुं छित्वाऽससक्तस्य बातामातोदरस्यतु उत्पीड ( ऊंचे को उठाकर ) संपीड ( चारों
विदार्य कोष्ठमंत्राणि बहिर्वास निरस्य च ।
कटीसक्तस्य तद्वच्व तत्कपालानि दारयेत् ॥ और घुमाकर ) विक्षेप ( विशेष रीति से
___ अर्थ-शस्त्रचिकित्सक को उचित है चलायमान करके ) और उत्क्षेपण ( ऊपरको कि पहिले कपाल की अस्थि को काटकर सरका कर ) द्वारा अथवा आदि शब्द से |
बाहर निकालदे । फिर गर्भ शकुनामक शस्त्रसे जैसे हो तैसे अपनी बुद्धि की कल्पना से
कक्षा, वक्षःस्थल, तालु, चिवुक इनमें से गर्भ का अनुलोमन करे और जब सीधा किसी अंग को दृढता से पकडकर बाहर होजाय तब हाथ से पकडकर खींचले । शस्त्रद्वारा मूढगर्भ का उपाय।
खींचले । कभी कभी कपालास्थि को बिना हस्तपादशिरोभियों योनि भुग्नः प्रपद्यते ।
| काटे ही अचिकूट वा गंडस्थल को पादेन योनिमेकेन भुमोऽन्येन गुदं च यः॥ पकड कर खींचले । जो कंधे की ओर से
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