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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७२) अष्टांगहृरूपे। - का गर्भ गिरा हो उतने दिन तक घृत और नागोदर गर्भ के लक्षण । नमक डाले बिना काली मिरच, चीता आदि । शोकोपवासाक्षाधैरथ वायोन्यतिनवात्॥ जठराग्निवर्द्धक द्रव्यों से संयुक्त हलका पे. । वाते क्रुद्ध कृशः शुष्यगर्भो नागोदरं तु तत् । उबृद्धमप्यत्र हीयतेस्फुरणं चिरात् १६ ॥ या पान कराता रहे । इस तरह रहने से | अर्थ-शोक, उपवास और रूक्षादि पित्त और कफ दोष तथा धातुका परि सेवन अथवा योनि के आतिस्त्राव से वायु क्लेद शुद्ध हो जाता है । तथा दोष और कुपित होकर कृश हुए गर्भ को शुष्क करधातु के परिक्लेद के शुष्क हो जाने के पी देता है । ऐसे गर्भ को नागोदर कहते हैं, छे बल, अग्नि और ओज को बढानेवाले कोई कोई इसे उपशुष्ककभी कहते हैं, इस घृतादि चार प्रकार के स्नेह तथा स्निग्ध गर्भ से बढ़ाहुआ गर्भ भी क्षीण होजाता है अन्न और स्निग्ध वस्ति हितकारी होती है । तथा गर्भ बहुत देर देरमें चलता फिरताहै।। उपविष्टक गर्भके लक्षण । उक्त गर्मों में उपचार । संजातसारे महति गर्भ योनिपरिसवात् । तयोवृहणवातघ्नमधुरद्रव्यसंस्कृतैः । वृद्धिमप्राप्नुवन् गर्भः कोष्ठेतिष्ठति सस्फुरः॥ घृतक्षीररसैस्तृप्तिरामगर्भाश्य खादयेत् ॥ उपविष्टकमाहुस्तं वर्धते तेन नोदरम् । तैरेव च सुतृप्तायाः क्षोभणं यानवाहनैः । अर्थ-प्रवृद्ध ( बढा हुआ ) और सं- अर्थ-उपविष्टक और नागोदर गर्भो जातसार ( बलवान् और अंग प्रत्यंगादि- में पुष्टिकारक, वातनाशक और मधुर द्रव्यों युक्त ) गर्भ होने पर यदि गर्भिणी के विधि | द्वारा सिद्ध किये हुए घृत, दूध और मांस वत न रहने पर योनि से रक्तस्त्राव होने रस द्वारा गर्भिणी की तृप्ति करनी चाहिये लगे तो गर्भ बढने नहीं पाता है और कोष्ठ तथा गर्भ की पुष्टि के लिये वैद्य कच्चे गर्भ में स्थित रहता है और चलता फिरता भी खवा देवे, इस कामको वैद्य स्वयं युक्तिपूर्वक है । इसको उपविष्टक गर्भ कहते हैं यह करै, गर्भिणी को मालूम न होने पावे, क्यों उदर को बढने नहीं देता है । इसका यह कि जो कच्चा गर्भ खाने से जुगुप्सा कारण है कि योनि के स्राव से वायु कुपित उत्पन्न हो तो गर्भ और गर्भिणी दोनों को होकर कफपित्त का परिगृहण कर रसवा- हानिकारक है । इस तरह उक्त वृंहणादि हिनी नाडी में ठहर जाताहै और इसतरह | द्रव्यों से साधित दूध, घृत और मांस रस नाडी के रोध से रस अच्छी तरह नहीं | तथा आम गर्भ के सेवन से अत्यन्त तृप्ति वहने पाता है, यही कारण गर्भ के न | होजाने पर उस स्त्री को स्थ, हाथी वा घोडे बढने का है जैसे घासपत्तों से जलकी नाली | पर बैठाकर बेग से ले जाकर क्षोभ करावै । एकजाने के कारण खेत हरा नहीं होने लीन गर्भ की चिकित्सा । पाता। | लीनाख्ये निस्फुरेश्येनगोमत्स्योत्कोशबर्हिजाः For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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