SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 368
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शारीरस्थान भाषाटीकासमेत् । (२७१) . को छोडकर रक्तपित्त की चिकित्सा में कही । इनका काथ पीने में हित हैं । मूंग आदि हुई विधियों का पालन करै ।* के यूष के साथ नीवार, कोदों सौखिया तीनमहिनेकेभीतर पुष्पदर्शनमेंकर्तव्य। आदि तृणधान्यका भोजन हित हैं यहां आदि असंपूर्णत्रिमासायाःप्रत्याख्याय प्रसाधयेत् | शब्दसे मोंठ मसूर आदि शिंबी कफपित्त आमान्वये चतत्रष्टं शीत रूक्षोपसहितम् । नाशक धान्यों का भी ग्रहण है । इस उप उपवासो घनोशीरगुडूच्यरलुधान्यकाः७॥ चार से आम के दूर होने पर पहिले की दुरालभापर्पटकचन्दनातीविषाबलाः। तरह स्निग्धर्शातल क्रिया का भीतर बाहर वधिताःसलिले पान तृणधान्यादिभोजनम् से प्रयोग करना उचित है। मुद्भादियूपैरामे तु जितं स्निग्धाधि पूर्ववत् । - अर्थ-तीन महिनेका गर्म होनेसे पहिले गर्भयातका पीछेका कर्तव्य । ही रक्तस्त्राव आदि व्यापत् उपस्थित हो तथा | गर्भे निपतितेतीक्ष्णंमद्य सामर्थ्यतःपिवेत्॥ . रक्तस्रावके संग आमका संबंध हो तो ये अ. | In आमा दोनोअ. | गर्भकोष्ठविशुद्धयर्थमतिविस्मारणाय च । लघुना पंचमूलेन रूक्षां पेयां ततः पिवेत् ॥ साध्य होते हैं । इसमें बड़ी सावधानी से चि पेयाममद्यपा कल्के साधितां पांचकौलिंके कित्सा करनी चाहिये ॥ यहां आमसंबंधी र- बिल्वादिपंचकक्वार्थ तिलोद्दालकतंडुलैः ॥ जोदर्शन होनेपर शीतक्रिया वाह्य और आ- मासतुल्यदिनान्येवं पेयादिः पतिते क्रमः । भ्यंतर दोनों रीतिसे हितकारी है ॥ यहां शं लघुरस्नेहलवणो दीपनीययुतो हितः॥१२ ।। दोषधातुपरिक्लेदशोषार्थ विधिरित्यवम् । का होती है कि शीतक्रिया रक्तकोहित आर | स्नेहान्नवस्तयश्चार्व बल्यजीवनपिनाः ॥ आमके विरुद्ध होनेसे आहत है ॥ इसका ___ अर्थ-ऊपर लिखी विधि से रहने पर समाधान यह है कि इसमें तिक्तकषायादि भी यदि दैवात् गर्भ गिरजाय तो गर्भाशय रूक्ष द्रव्य मिला देना चाहिये । यथा देश, काल, रोगी का बल और सात्म्य का वि. और कोष्ठ की शुद्धि के निमित्त और गर्भ स्राव की वेदना के विस्मरण के लिये चार करके उपवास कराना भी हित है । सामर्थ्यानुसार तीक्ष्ण मद्यपान पिलाना उऔर मोथा, खस, गिलोय, अरलू, धनियां चितहै तदनन्तर लघु पंचमूलसे सिद्ध की हुई धमासा, पित्तपापड़ा, चंदन, अतीस, खरैटी, रूक्ष पेया देना चाहिये । मद्य न पीने वाली ___ + क्षीरपाककी यह विधि है" द्रव्यादष्ट स्त्री मद्य को न पीकर पंचकोल ( पीपलं, गुणं क्षीरं क्षीरात्तोयं चतुर्गुणम् । क्षीराव | पीपलामूल, चव्य, चीता, सोंठ ) का करक शेषः कर्तव्यः क्षीरपाके त्वयंविधि । अर्थात् डालकर सिद्ध की हुई पेया पावे । अथवा द्रव्यसे अठगुना दूध और दूधसे चौगुना ज ल डालकर औटाया जाय, जब दूध शेष र वृहत्पंचमूल के काथ में मिद्ध की हुई पेया ह जाय तब उतार लिया जाय । क्षीरपाक ले । इस में काले तिल, कोदों और तंडुल की यही बिधि है। | भी डाल देने चाहिये । तथा जितने महिने For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy