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(३७०)
____ अष्टांगहृदये।
है कि उक्त नियमों की पालना डेढ महिने | सब द्रव्यों को पीसकर इस्त्र में वृत मिलाकर तक करती रहे और इस समय में क्रम से | इससे रुई के कपडे की बत्ती सी बनाकर इन माहार विहारादि के कठिन नियमों को विशेषरूप से भिगोवै फिर इसको योनिमें छोडती रहै । तथा फिर रजोदर्शन होनेपर | अथवा पेडू पर रक्खे । ( जैसे फूलसे फल उसका प्रसूती नाम जाता रहता है। पैदा होता है वैसेही रजसे गर्भ होता है इतिश्री अष्टांगहृदये मथुरानिवासी । इसलिये रजसंवधी रक्त को पुष्प कहतेहैं) । श्रीकृष्णलालकृतभाषाटीकायां शा- स्त्री की स्नानविधि । रीरस्थाने प्रथमोऽध्यायः ॥ १॥ शतधौतघृताक्तां स्त्री तदंभस्यवगाहयेत् ।
ससिताक्षौद्रकुमुदकमलोत्पलकेसरम् ३ ॥
लिह्यात्क्षीरघृतं खादेच्छंगाटककसेरुकम् । द्वितीयोऽध्यायः पिबेत्कांताजशालूकबालोदुंबरवत्पयः ४॥
श्रृतेन शालिकाकोलीद्विवलांमधुकेक्षुभिः ।
पयसा रक्तशाल्यन्नमधात्समधुशर्करम् ५ ॥ अथाऽतो गर्भव्यापदं शारीरं व्याख्यास्यामः।
रसैर्वा जांगलैःअर्थ-अब हम गर्भव्यापद शारीरनामक
शुद्धिवर्ज चाऽस्रोक्तमाचरेत् । अध्याय की व्याख्या करेंगे।
अर्थ-सौबार अर्थात् बहुत वार धोये गर्भिणी के पुष्पर्शन में कर्तव्य । हुए वृत का गर्भिणी की नाभि के नीचे "गर्भिण्या परिहार्यागांसेवयारोगतोऽपिवा चारों ओर लेप करदे और ऊपर कहे हुए पुप्पे दृष्टेऽथवाशूले बाह्यांतः स्निग्धशीतलम्
खस, कमल, चंदन और क्षीर वृक्ष की सेव्यांभोजहिमक्षीरिवल्ककल्काज्यलोपतान् धारयेद्योनिबस्तिभ्यामा नपिचुनक्तकान्
छाल के क्वाथ से स्नान करावै । पीछे ___ अर्थ-गर्भिणी के त्यागने याग्य आहार
कमोदनी, कमल और उत्पल की केसर में विहार और पूर्वोक्त अति मैथुनादि के सेवन | शहत और मिश्री मिलाकर चाटे, कोई कोई से पुष्प का दर्शन होने पर, अथवा किसी
| कहते हैं कि दूध से निकला हुआ घृत खाना 'प्रकार के रोग से रजोदर्शन होने पर अथवा
चाहिये । सिंघाडे और कसेरू खाय । तथा 'शूल होने पर वाह्य और अभ्यंतर स्निग्ध गंधप्रियंगु, कमल, कमलनाल और कच्चा
और शीतल क्रिया करना चाहिये । अर्थात | गूलरफल डालकर औटाया हुआ दूध पीवे। स्निग्ध और शीतळ प्रदेह, परिषेक, स्नान
लाल शाली चांवल, परवल, काकोली, बला, और अवगाहनादि बाहर के प्रयोग और अति वला, मुलहटी और इक्षमूल डालकर स्निग्धशीतल अन्नपानादि आभ्यंतर प्रयोग | पकाया हुआ दूध अथवा जांगल मांसके युषमें करना चाहिये । और खस, कमल, चन्दन
शहत मिश्री मिलाकर इसके साथ शालीचांपीपल आदि दूधवाले वृक्षों की छाल इन | वल का सेवन करै । तथा वमन विरेचन
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