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शारीरस्थान भाषाटीकासमेत ।
(२६९)
- प्रसूती का उपचार । हिता यवागू स्नेहाढथा सात्म्वतःपयसाथ या अथ बालोपचारेण बालं योषिदुपाचरेत् ९३ सप्तरात्रात्परं चास्यै क्रमशो वृहणं हितम् ॥ सृतिका क्षुद्वतीतैलाघृतादामहतीं पिबेत् ॥ अर्थ-स्नेह, गुडोदक और वातघ्न औपंचकोलकिनी मात्रामनुचोष्णं गुडोदकम् ॥ षधों के काथ के पचजाने पर प्रसूती स्नान वातघ्नौषधंतोयं वा तथा वायुर्न कुप्यति । विशुध्यति च दुष्टानं द्वित्रिरात्रमयंक्रमः ९५
| करके पूर्वोक्त पंचकोलादि औषधियों से सिद्ध की स्नेहायोग्यातु निःलेहमममेव विधि भजेत्।। हुई पेया पान करावे तीन दिन पीछे विदारीपीतवत्याश्च जठरंयमकाक्तं विवेष्टयेत् ९६॥ | गणोक्त औधषियों के काथ में सिद्ध की हुई __अर्थ-वालकों के भरण पोषण में निपुण
यवागूमें घृत मिलाकर पान करावै। और जो स्त्री वालोपचरणीय विधान में कहे हुए
प्रकृति के अनुकूल हो तो दूध से तयार आहार विहार से उत्पन्न हुए वालक का
की हुई यवागू वृत मिलाकर पान करावे । पालन पोषण करै । प्रसूती को भूख लगने
सात दिन पीछे प्रसूती स्त्री को क्रम से पर पंचकोल । पीपल, पीपलामूल, चव्य चीता, सोंठ ) का चूर्ण घृत वा तेल में
श्रृंहण पथ्य देवै । जीवनीय वृहणीय, और भिलाकर महती मात्रा का पान करावै । ( जो
मधुर वर्ग से सिद्ध किया हुआ अभ्यंग उद्वआठ पहर में पकती है उसे महती मात्रा
र्तन, परिषेक, अवगाहन द्वारा तथा हृद्य कहते हैं ) फिर गुड़ पानी में औटाकर पान अन्न पान द्वारा वृंहण करै । करावे अथवा वातनाशक औषधियों का क्वाथ पिशित का अनुपयोग । देवै । ऐसा करने से वात कुपित न होगा द्वादशाहेऽनतिक्रांते पिशितं नोपयोजयेत् । और दुष्ट रुधिर भी शुद्ध हो जायगा । दो
। अर्थ-जब तक बारह दिन न होचुके तब तीन दिन तक प्रसूती को इसी रीति से
| तक मांस का सेवन अनुचित है। रखना चाहिये।
प्रसूती का यत्नपूर्वक उपचार । - जिस प्रसूती को स्नहपान अनुकूल नहीं | यत्नेनोपचरेत्सूतां दुःसाध्या हि तवामयाः॥ है वह स्नेह को छोडकर अन्य संपूर्ण पूर्वोक्त | गर्भवृद्धिप्रसवरुक्लेदारसुतिपडिनैः विधियों का पालन करै । स्नेहपान के यो- ____ अर्थ-प्रसूता स्त्री की सुश्रूषा बहुत यत्नग्य स्त्री को स्नेहपान के पीछे अथवा स्नेह पूर्वक करनी चाहिये । क्यों कि उस काल पान के अयोग्य स्त्रीको गरम गुडोदकवा वात , में होनेवाले रोग जैसे उदरवृद्धि, प्रसववेदमा नाशक औषधों का काथ पान कराने के | क्लेद, रक्तस्राव और पीडनादि दुःसाध्य पीछे उनके जठर पर तेल वा घृत लगाकर | होते हैं। कपड़े से लपेट देवै ।
उक्तविधि सेवन का काल । पेयापान की विधि। एवं चमासाध्यान्मुक्ताहारादियंत्रणा। जीर्णे माता पिवेत्पेयां पूर्वोक्तौषधसाधिताम् गतसूताभिधानास्यात्पुनरार्तवदर्शनात्॥, ज्यहादूर्ध्वं विदार्यादिवर्गक्वाथेन साधिता॥ अर्थ-इस तरह प्रसूता स्त्री को उचित
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