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अ० १
शारीरस्थान भाषाटीकासमेत !
(२५३ )
परिणत ] माता के आहारके रसरूप में परि । रक्तस्य स्त्री तयोः साम्ये क्लीबः। णत होने से उत्पन्न सत्वरजतमोमय आका- अर्थ-पूर्वोक्त कार्य कारण के सदृश शादि पंच महाभूतोंसे वह गर्भ माताकी कू. हेतु से पुरुष के शुक्र की अधिकता और ख में क्रम क्रमसे वृद्धि पाता है । स्त्री के शोणित की अल्पता के कारण पु
गर्भाशयमें गतजीवका न दीखना। रुष की उत्पत्ति होती है । इसी तरह पुरुष तेजोयथार्करश्मीनांस्फटिकेन तिरस्कृतम् । के शुक्र से स्त्री के रज की अधिकता के नेधनं दृश्यते गच्छत्सत्वो गर्भाशयं तथा ३॥ कारण स्त्री की उत्पत्ति होती है और जब
अर्थ-जैसे सूर्यकी किरणों का तेज सू. । शुक्र और आर्तव दोनों समान होते हैं तब र्यकांत नामक स्फटिक मणिसे व्यवाहत हो
उभयलिंगविशिष्ट क्लीव अर्थात् नपुंसक होकर स्फटिकके नीचेवाले ईधनमें प्रवेश कर- ता है । दारुवाहीने कहा है कि स्त्रीपुंसयाः ता हुआ दिखाई नहीं देता है परन्तु उस ऽसुसंयोगे यद्यादौ विसृजेत पुमान् । शुक्रं तेज का कार्य ईधनमें दिखाई देता है । ऐसे | ततः पुमान् वीरो जायते बलवान् दृढः । ही जीवभी गर्भाशयमें प्रवेश कर जाता है पर
अथचेद्वनितापूर्व विसृजेत् रक्तसंयुतं । ततो रून्तु प्रवेश करता हुआ दिखाई नहीं देता,के- पान्विता कन्या जायते दृढसंहता"। वल हाद्विरूप अपनेकार्यसे दिखाई देनेलगताहै एककाल में अनेकगर्भ । जीवकी अनेकयोनि में दृष्टान्त ।
शुक्रांतवे पुनः॥८॥ कारणानुविधायित्वात्कार्याणां तत्स्वभावता वायुना बहुशोभिन्ने यथास्वं ववपत्यता।' नानायोन्याकृतीःसत्वोधत्तेऽतो द्रुतलोहवत् । अथे-गमस्थवायु जब शुक्र और आर्तव - अर्थ-कार्य कारण के अनुविधायी होते के बहुत से भाग कर डालता है तब एक हैं इसलिये कारण के सदृश ही कार्य होता ही बार में अनेक बालकों की उत्पत्ति हो है अर्थात् जैसा कारण होता है वैसा ही जाती है, जब शुक्र अधिक होता है और कार्य भी होता है जैसे अग्निद्वारा गलाई वायु उसको भिन्न भिन्न भागों में विभक्त हुई धातु मिट्टी के बने हुए जिस जिस कर देता है तब बहुत से पुरुषों की उत्पत्ति आकृति वाले सांचे (Mould) में होती है और जव अधिक भाव में स्त्रीका ढाली जाती है वैसी ही आकृति उस धातु रज बहुत भागों में विभक्त हो जाता है तब की हो जाती है वैसे ही एक आत्मा भी
वहुत सी स्त्री संतान उत्पन्न होती हैं, कृत कर्म की प्रेरणा से मनुष्यादि अनेक
शूकरी और कुत्ती के अनेक संतान होने का योनियों में प्रवेश करके उसी उसी योनि
यही कारण है। का आकार धारण कर लेती है ।
विकृतगर्भ का कारण । - स्त्री पुंसादिका जन्म । वियोनिविकृताकारा जायते विकृतैर्मलैः६॥ अत एव च शुक्रस्य बाहुल्याज्जायते पुमान् ।। अर्थ-विकृत बातादि मलद्वारा जब शु.
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