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सत्रस्थान भाषाटीकासमेत ।
(२५१)
है ? इसका कारण यह है कि इस स्थान | गई हैं, इसीलिये इस स्थानको अन्यस्थानों में उन सूक्ष्म विषयों की समालोचना रूप | का रहस्यवत् कहा गया है । सूचना दीगई है जो आगे आनेवाले शा- इति श्री अष्टांगहृदये भाषाटीकायां रीरादि स्थानों में विस्तारपूर्वक वर्णन की त्रिंशोऽध्यायः ।
इति श्रीवैद्यपतिसिंह गुप्तसूनु वाग्भट विरचितायां अष्टांगहृदयसहितायां मथुरा निवासि श्रीकृष्णलाल कृत भाषाटीकान्वितायां प्रथम
सूत्रस्थानं संपूर्णम् ।
समाप्तमिदं सूत्रस्थानमें
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