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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० २९ सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । (२३७ ) वा बांये पसवाडों से बांधी जाती हैं घाव के ललाई, वेदना, सूजन और पीव बढजाती ऊपर वा नीचे नहीं बांधी जाती हैं । है इस लिये दिन में न सौना चाहिये तथा घाव में पट्टी आदिका फल। स्त्रियों के स्मरण करने से, स्पर्श से देखने शुचिसूक्ष्मदृढाः पट्टाः कवल्यः सविकेशिकाः से वीर्य अपने स्थान से चलित होकर झरधूपितामृदवलक्षणा निर्वलीका व्रणे हिताः॥ ' अर्थ-साफ, पतली और मजबूत कपड़े जाता है इस लिये स्त्रीसंसर्ग न होने पर की पट्टी घावमें हितकारी होती है तथा धूपित स्त्रीसंग से उत्पन्न हुए दोष पैदा होनाते मुदु, इलक्ष्ण और सलवटों से रहित कव हैं इसलिये घाववाले के पास स्त्रियों को लिका व्रग हितकारी होती है । न आने दे। ब्रणका रक्षण । घाव में भोजनादि। कुर्वीताऽनंतरंतस्य रक्षारक्षानिषिद्धये। । भोजनंतुयथासात्म्यं यवगोधूमषष्टिकाः । बलि चोपहरेत्तेभ्यः मसूरमुद्तुवरीजीवंतीसुनिषण्णकाः।। ____ सदा मूर्नाऽवधारयेत् ॥ ३० ॥ मलमूलकवार्ताकतंडुलीयकवास्तुकम । लक्ष्मी गुहामतिगुहां जटिलां ब्रह्मचारिणीम्। कारवेल्लककर्कोटपटोलकटुकाफलम् ॥ घच छत्रामतिच्छन्नां दूर्वा सिद्धार्थकानपि । संघवंदाडिमंधात्री घृतीतप्ताहिमं जलम् । अर्थ-फिर उस व्रण की रक्षा के नि जीर्णशाल्योदनं स्निग्धमल्पमुष्णं द्रवोत्तरम् । भुंजानोजांगलैमासैः शीघ्रं व्रणमपोहति । मित्त मांसाहारी राक्षसों के निवारणार्थ बलि अर्थ-व्रणरोगी को यथासात्म्य अपने प्रदान करै, तथा पद्मचारिणी, पृश्निपर्णी | अपने अनुकूल भोजन करना चाहिये, जौ, शालिपर्णी, जटामांसी, ब्राह्मी, बच, सौंफ गेंहूं, साठीचांवल, मसूर, मूंग, अरहर, जीविषाणिका, दूब और सफेद सरसों इनको वंती (जेंती का शाक ) चौपतिया, कच्ची सदा मस्तक पर धारण करे। मुली, बेंगन, चौलाई, बथुआ, करेला, गरम जल के उपचारादि । ककोडा, परवळ, कंकोल, सेंधानमक, अनार, ततः नेहदिनेहोक्तं तस्याऽचारं समादिशेत्। अर्थ-तदमंतर स्नेहपान के दिन में जो आंवला, घृत, गरम करके शीतल किया जो उपचार कहे गये हैं उन सव के प्रति हुआ जल, थोडासा पुराने चांवलों का भात, पालन का उपदेश करै अर्थात् उष्णोदक | उपचार का पालन करै । दि पतले पदार्थों से मिला हुआ जांगलमांस ब्रण में धयकर्म । के साथ खाना चाहिये इससे घाव बहुत दिवास्वप्नो प्रणे कंडूरागरुक्शोफपूयकृत् । जल्दी पुर जाता है । स्त्रीणां तु स्मृतिसंस्पर्शदर्शनचालतनुते। पथ्यका हितकारित्व। शुक्रव्यवायजाम दोषानसंसर्गेऽप्यवाप्नुयात् | अशितं मात्रया काले पथ्यंयाति जरांसुखम्। ___ अर्थ-दिन में सोने से घाव में खुजली, | अजीर्णत्वनिलादीनां विनमोबलवान् भवेत् For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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