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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२३६) अष्टांगहृदये। अ० २९ वैद्य का शस्त्रकर्म में शौर्यत्व । मधुर मधुर वाक्यों से तथा रोगी की आंख शौर्यमाशुक्रिया तीक्ष्णं शस्त्रमस्वेश्वेपथुः ॥ और मुख पर शीतल जल लगाकर रोगी असमोहश्व वैधस्य शस्त्रकर्मणि शरय ।। को आश्वासन दे । फिर अपनी उंगली से ___ अर्थ-शस्त्र कर्म में प्रवृत्त होने वाले व्रण को चारों ओर से दाव दावकर पूयादि चिकित्सकके लिये इतनी बातोंकी आवश्य दोष को निकालदे फिर मुलहटी आदि से कता है (१) शौर्य ( शस्त्रका प्रयोग सिद्ध किये हुए काथ से ब्रण को धोकर करने में धैर्य अर्थात् दृढता ), (२) वस्त्रके टुकड़े से जल पोंछकर गूगल,अगर, आशुक्रिया ( शस्त्र चलाने में शीघ्रता पूर्व | सफेद सरसों, हींग, राल, लवण, पीपलाक चतुराई ), (३) तीक्ष्ण शस्त्र, (४) मूल, और नीम के पत्ते इन सब की धूनीअस्वेदवेपथु ( व्रण को देखकर घबडाहट से पसीने न आवे और हाथ न कांपे ) वना घीमें सानकर अग्निपर रखकर द्रणस्थान | को धूनी दे । (५) असंमोह ( तत्कालोचित काम करने में सम्यक् प्रवृत्ति)। घाव में बत्ती का प्रवेश । तिर्यक छेदन के योग्यस्थान ! तिलकल्काज्यमधुभिर्यथास्वं भेषजेन च २६ दिग्यां वति ततोदद्यात्तैरेवाऽच्छाइयेच तम्। तिर्यछिद्याललाटबंदतवेष्टकजत्रुणि २२ ॥ अर्थ-पीछे तिलका कल्क, घृत और कुक्षिकक्षाक्षिकूटौष्ठकपोलगलवंक्षणे। मधु, इनसे सानकर रुई की बत्ती घाव के अन्यत्र छेदनातियासिरामायुविपाटनम् ॥ भीतर भरदे । वातत्रण में तिल के कल्क ___ अर्थ-ललाट, भृकुटी, मसूडा, जत्रु ( हंसली !, कुक्षि, कक्षा, अक्षिकट, ओष्ट, से, पित्त व्रण में वृत से और कफ व्रण में कपोल, गला और वंक्षण इनमें शस्त्र का शहत से सानकर बत्ती का प्रयोग करै । प्रयोग तिरछी रीति से करै । किन्तु इन कोई २ कहते हैं कि कल्कादि तीनों द्रव्य को छोडकर अन्य स्थान पर तिर्यक छेदने ही में सानकर बत्ती लगावै और बत्ती को से सिरा और स्नायुओं में व्यापत्ति होना उन्हीं द्रव्यों के कल्क से ढक दे। संभव है। घाव का पीछे का कृत्य । । शन कर्म में रोगी को आश्वासन । घृताक्तैः सक्तुभिश्चोर्ध्वम् घनां कलिकां ततः॥ २७॥ शस्त्रेऽयचारिते वाग्भिः शीतांमोमिन- निधाय अपत्या बनीयात्पन सुसमाहितम्। रोगिणम् । पार्वे सव्येऽपसव्ये बानाऽधस्तानैव चोपरि आश्वास्य परितोऽगुल्या परिपीडयणंततः। क्षालयित्वा कषायेण प्लोतेनांभोऽपनीय च । ___ अर्थ-पीछेअधभुने जौ का सत्तू घी डागुग्गुल्वगुरु सिद्धार्थहिंगुसर्जरसान्वितः २५॥ लडर पानी में लूपडी बनाकर ऊपर से धूपयेत्पटुपट्नथानियपत्रैर्वृतप्लुतैः। रखदे और उसके ऊपर कपड़े की पट्टी अर्थ-शस्त्रका प्रयोग करने के पीछे | बहुत सावधानी से बांधदे । ये पट्टी दोहे For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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