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अष्टहृदये |
अर्थ- वायुके बिना वेदना, पित्तके बिना दाह, कफके बिना सजन, और रक्त के विना राग (ललाई ) नहीं होती है, इसलिये रक्त और कफादिक तीनों दोष प्रकुपित होकर शोध का पाक करते हैं ।
अत्यन्त पाकर्म छिद्रादि । पाकेऽतिवृत्ते सुविरस्तनुत्वग्दोषभक्षितः । वलीभिराचितः श्यावः शर्यिमाणतनूरुहः
अर्थ - शोफका पाक अत्यन्त होजाने से भीतर पडा हुआ पीव स्नायु और मांसादिक को दूषित कर देता है, सूजनमें छिद्र होजाते हैं, वहां की त्वचा पतली पडजाती है, झुर्रियां पडजाती हैं, और रंग काला हो जाता है और रोम गिरपडते हैं । रक्तपाक के लक्षण ।
कफजेषु तु शाकेषु गंभीरं पाकमेत्यसृक्कू ॥ पक्कलिंगं ततोऽस्पष्टं यत्र स्याच्छीतशोफता । त्वफ्सावर्ण्यरुजोऽल्पत्वंघजस्पर्शत्वमश्मवत् रक्तपाकमिति ब्रूयात्तं प्राशो मुक्तसंशयः ।
अर्थ - कफज शोफ में रक्तका बडा गंभीर पाक होता है, पक्क के लक्षण दिखाई 'नहीं देते हैं, इसलिये पक्त्र और अपक
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सूजन का मालूम करना कठिन होजाता है परंतु यदि सूजन ठंडी हो, त्वचा समानवर्ण, "दर्द कम और छूने में पत्थर के समान कठोर हो तो समझदार वैद्य निःसंदेह होकर इसे रक्तपाक कहते हैं । यह शोफपाक नहीं कहलाता है 1
सूजनमें दारणादि । अल्पसत्वेऽबले बाले पाके चाऽत्यर्थमुद्धते ॥ दारणं मर्मसंध्यादिस्थिते चाऽन्यत्र पाटनम् ।
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अ० १९
अर्थ - अल्पसत्व, दुर्बल और बालक इन की सूजन में अथवा जिस सृजन का पाक अतिक्रान्त हो गया हो और जो सूजन मर्म और संधि आदि स्थानों में उत्पन्न हुआ हो ऐसी सूजनों में अस्त्र का प्रयोग न कर के गूगल, अलसी, गोदंती, स्वर्ण क्षीरी, कबूतर की बीट, क्षार औषध और क्षार इन दवाओं को लगाकर सूजन को विदीर्ण कर डाले, अन्य स्थानों में अस्त्र का प्रयागकरै ।
आमशोफ के छेदन में उपद्रव ! आमच्छेदे सिरास्नायुव्यापदोसगतिस्रुतिः ॥ रुजोऽतिवृद्धिदरणं विसर्पो वा क्षतोद्भवः ।
अर्थ-आमशोकं अर्थात् कच्ची सूजन का अस्त्र से छेदन करने में सिरा और स्नायु में विकार होते हैं, रक्त बहुत बहने लगता है, तीव्र बेदना, विदरण वा घाव से उत्पन्न विसर्प उत्पन्न होते हैं ।
अंतस्थ पयको सिरादाहकता । तिष्ठन्नतः पुनः पूयः सिरास्नाय्वसृगामिपम् ॥ विवृद्धो दहति क्षिप्रं तृणोलपमिवानलः ।
अर्थ - - जो पूयं भीतर रह जाती है वह भीतर ही भीतर फैलकर जिरा, स्नायु, रक्त और मांस को ऐसे दग्ध कर देती है जैसे अग्नि तिनुकों के ढेर को जला देती है ।
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असमीक्षाकारी वैद्यकी निंदा | यश्छिनत्याममज्ञानाद्यश्च पक्वमुपेक्षते १३ श्वपचाविव विज्ञेयौ तावनिश्चितकारिणौ ।
अर्थ - जो वैद्य कचे शोफ को चार देते हैं और पके हुए की उपेक्षा करते हैं