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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra म० २९ अर्थ - 3 www. kobatirth.org सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । - अत्र हम यहां से शस्त्रकर्म विधि अर्थ- पच्यमान शोफ ( जो सूजन पकने लगती है ) का रंग त्वचाके समान नहीं सूजन का उपचार | रहता, लाल रंग की होजाती है और मशक अर्थ - प्राय: प्रथम सूजन होती है और फिर सूजनके पकने पर घाव होजाता है ( कभी कभी शस्त्रादि की चोट से भी घाव होजाता है इसीलिये प्रायः शब्दका प्रयोग किया गया है ) अतएव शीतस्पर्श और शीतवीर्य लेप और परिषेक रक्तमोक्षण, वमन विरेचनादि संशोधन ( आदि शब्द से कषायपान और घृतपानादिका भी ग्रहण है ) द्वारा पाकको रोकने के लिये यत्नपूर्वक सूजनकी चिकित्सा करै । व्रणः संजायते प्रायःपाकाच्चयपूर्वकात् ॥ | की तरह फूल जाती है, उसमें सुई छिदने तमेवोपचरेत्तस्माद्रक्षन्पार्क प्रयत्नतः ॥ की सी वेदना होने लगती है, शरीर में सुशीतलेपसेकास्त्रमोक्ष संशोधनादिभिः । अंगडाई और जंभाई आने लगती है, संरंभ ( अंगपीडन, विघट्टन, छेदन, दंशन आदि अनेक प्रकारकी वेदना ), अरुचि, सर्वागमें होनेवाला तीव्र दाह, उषा ( भरतियुक्त दाह ), तृषा, ज्वर, अनिद्रा ये सब उपद्रव उपस्थित होते हैं । व्रणकी तरह सूजन हाथ के लगाने को नहीं सह सकती है, इस के ऊपर गाढा घृत रखदिया जाय तो वह पिघल जाता है । नामक अध्याय की व्याख्या करेंगे । आम शोफका लक्षण | athi seviseपोरुक्सामः सवर्णः कठिनः स्थिरः ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | अर्थ- सूजन की तीन अवस्था होती हैं (१] आम, [ २ ] पच्यमान और [ ३) पाकावस्था | इनमें से आम शोफ [ कच्ची सूजन ] प्रमाण में अल्प अर्थात् कम फूली हुई, कम गरम और कम वेदनावाली होती है, इसकारंग भी त्वचाके रंगके सदृश होता है, कठोर होती है और पकी हुई की तरह स्थिर रहती है अर्थात् हिलती झुलती नहीं हैं। पच्यमान शोफका लक्षण | पच्यमानो विवर्णस्तु रागी बस्तिरिवाततः । स्फुटतीव सनिस्तोदः सांगमर्दविजृंभिकः । संरभारुविदाहोषातृड्ज्यरानिद्रान्वितः । स्त्यानं विन्यंदयत्माज्यं व्रणवत्स्पर्शनासहः । ( २३३ ) शोफकी पक्वावस्था | पक्वेऽल्पवेगता स्लानिः पांडुता वलिसंभवः । नामोऽतेथूनतिर्मध्ये कंशोफादिमार्दवम् ॥ स्पृढे दूयस्य संवारो भवेद्रस्ताविवभसः । अर्थ- सूजन के पकजाने पर वेदना कम होजाती है, म्लानता उत्पन्न होती है, त्वचा का रंग पीला पडकर खाल सुकडजाती है, किनारों पर निचाई और बीच में ऊंचाई होजाती है, खुजली और सूजनमें कमी हो जाती है, ये सब लक्षण सूजनके पकने पर होते हैं तथा जैसे जल से भरी हुई मशक मेंदवाने जल इधर उधर डोलने लगता है वैसे ही इसे दबाने से पीव इधर उधर फिरने लगता है । For Private And Personal Use Only अनिलादि बिना शलादि असंभव । शूलंनतेऽनिलाद्दाहः पित्ताच्छो फाकफोदयात् रागो रक्ताच पाकः स्यादतो दोषैः सशोणितैः
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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