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(२३२)
अष्टांगहृदये।
कानसे कीडे निकालना। तीक्ष्णोपनाहपानानघनशस्त्रपदांकनैः । कीटे स्रोतोगते कर्ण पूरयेलवणांबुना ॥
पाचयित्वा हरेच्छल्यं पारनैषणभेदनैः। शुक्तेन वा सुखोष्णेन मृते क्लेदहरो विधिः। अथे-शल्य जब मांसके बहुत भीतर ___ अर्थ-जो चींटी मच्छर आदि काई जीव घुसजाय और वहां वह न पके तो उसे म. कानमें घुस गया हो तो नमक और तेल । र्दन, स्वेदन अथवा कदाचित् वमनविरचनामिलाकर अथवा थोडी गरम कांजी को कान दि शुद्धिद्वारा, कदाचित् कर्षणक्रिया, कदामें भरदे । ऐसा करने से जब कीडा मरजाय | चित् वृंहण, कदाचित् तीक्ष्ण उपनाह,कदा तब कानके भीतरसे पानी निकालनेके उपा- | चित् तीक्ष्ण अनपान, कदाचित घनशस्त्रों यों से कान को साफ करदे । के पर्दोसे अंकन द्वारा इस स्थानको पकाक.
लाखके शल्यका निकालना। र पाटन, एपण और भेदनादि उपायों से जातुष हेमरूप्यादिधातुजं चचिरस्थितम् ॥ निकाल डाले । ऊप्मणा प्रायशःशल्यं देहजेन विलीयते ।
शल्य निकालने में ज्ञान । ___ अर्थ-लाख अथवा सोने चांदी आदि
| शल्यप्रदेशयंत्राणामवेक्ष्य बहुरूपताम् । धातुओं का शल्य बहुत दिनतक रहने से | तैस्तैख्याथैमतिमान् शल्य विद्या तथा हरसे देहकी गरमीद्वारा ही पिघल जाता है। ___अर्थ- अनेक प्रकार के धातु सींग बांस - __ काष्ठादिशल्यका न निकलना। आदि के शल्य, त्वचा मांसादि शल्य के मृद्धेणुदारुशृंगास्थितबालोपलानि च ॥ अनेक स्थान और स्वस्तिकादि अनेक यंत्र शल्यानि न विशीर्यते शरीरे मृन्मयानि वा।
इन सबके अनेक रूप और अनेक आकारों __अर्थ-मृत्तिका, वांस, लकडी, सींग, हड्डी
को जानकर बुद्धिमान् वैद्य को उचित है दांत, बाल, पत्थरकाटुकडा और मृत्तिका के
कि उक्त और अनुक्त उपायों से जैसे हो अन्य शल्य शरीरकी गरमी से नहीं पिघलते हैं
सके तैसे शल्यको निकालने का यत्न करै । विषाणादि शल्यका अविलयन् ।
संग्रह में लिखा है "व्रणे प्रसन्ने प्रान्तेषुनाविषाणवण्ययस्तालदारुशल्यं चिराइपि ॥ प्रायो निभुज्यते तद्धि पचत्याशु पलासृजी।
तिस्पर्शसहिष्णुषु। अरुपेशोफे च तापेचनिः अर्थ-सींग, बांस, लोहा और तालकाष्ठ शल्यमिति निर्दिशेत् ,, का शल्य दीर्घकालमें भी नहीं पिघलता है। इतिश्री अष्टांगहृदये भाषाटीकाय यह बहुत जल्द मांस और रक्तको पका देता अष्टाविंशोऽध्यायः । है और देहकी ऊष्मा द्वारा प्रायःही बाहर निकलता है।
एकोनत्रिंशोऽध्यायः। मांसावगाढ शल्पका निकालना । शल्ये मांसावगाढे च स देशो न विदहाते। अथाऽतः शस्त्रकर्मविधिमध्यायं व्याख्याततस्तं मर्दनस्वेदशुद्धिकर्षणहणैः ।
स्यामः।
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