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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ. २८ सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । (२३१) दुष्टवात, विष, दूध, रक्त और जलरूप ) मुखनासिका और कंठ के शल्य । शल्य को चूषणद्वारा निकाले । अशक्यं मुखनासाभ्यामाहर्तु परतो नुदेत् । . कंठस्रोतोगत शल्य । अप्पानस्कंधघाताभ्यांग्रासशल्यं प्रवेशयेत्॥ कंठस्रोतोगते शल्ये सत्रं कंटे प्रवेशयेत। । अर्थ-मुख आर नासिका में लगा हुआ बिसेनात्ते ततः शल्ये विसं सूत्रं समं हरत्। शल्य यदि बाहर न निकल सके तो जिस अर्थ-कंठस्रोतोगत शल्यम एक सूत की तरह हो सके उसे कोष्ठके भीतर लेजाकर मृणाल सहित प्रविष्ट कर जब मृणाल कंठ- वाहर निकालने का यत्न करे । कंठ में जो स्थ शल्य में चिपट जाय तब डोरी. मृणाल | प्रास अटक गया हो तो जल पीकर या और शल्य सबको एक साथ खींचले। कंधों को थपथपा कर भीतर को प्रवेश करै अन्यशल्प । अक्षिगत शल्य । नाड्याऽग्नितापितांक्षिप्त्वा शलाकामाप्स्थ रीकृताम् । सूक्ष्माभिव्रणशल्यानि भौमवालजलैहरेत् । आनयेज्जातुषं कंठात् अर्थ-आंख और ब्रण के स्थान में जो ___जतुदिग्धामजातुषम् ॥ | बहुत सक्ष्म शल्य घुस गया हो तो उसे अर्थ-लाख का शल्य कंठ में गत होने | रेशमी वस्त्र, बाल वा जल के तरड़े से दूर पर एक लोहे की सलाई को अग्नि करने का यत्न करै । में तपाकर जल में बुझाकर नाडी यंत्र में उदरसेजल निकालना। रखकर कंठ में प्रविष्ट करके लाख के शल्य को खींचले । यदि यह शल्य लाखका न | | अपां पूर्ण विधुनुयादवाक्शिरसमायतम् ॥ वामयेद्वाऽऽमुखं भस्मराशौ वा निखनन्नरम् हो और तृण काष्ठादि का हो तो लाखको ___ अर्थ-जो जलमें न्हाने, डूबने वा तैरने सलाई पर लगाकर कंठ में से शल्य को से पेटमें जल भर जाय तो मनुष्यका सिर निकाले । ... केशगुच्छ से शल्यनिकालना।। नीचा और टांगे ऊंची करके हिलाकर वमन केशोदुकेन पीतेन द्रवैः कंटकमाक्षिपेत। करादेवै अथवा मुखसक राखके ढेरमें दावदे। सहसा सूत्रबद्धेन वमतः तेन चेतरत् ॥ कानसे जल निकालनेका उपाय । अर्थ-मछली आदि के मांस के साथ कर्णेऽदुपूर्ण हस्तेन मथित्वा तैलवारिणी ॥ कंटक कंठ में चला जाय तो पानी आदि क्षिपदधोमुख कंगहन्याद्वा चूषयेत वा । पतले पदार्थ के साथ बालों का गुच्छा । अर्थ-कानमें जल भर गया हो तो उस गले के भीतर प्रविष्ट करें और इस तरह में तेल और जल मिलाकर भरदे और कान वमन कराव इससे कंठ का कंटक बाहर को ओंधा करके ऊपर से थप्पी लगावै अथनिकल आवेगा । इसी तरह और और वा कपडे की बत्ती भीतर प्रवेश करके जल शल्यों को भी निकाले । | को चूसले । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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