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(२३०)
अष्टांगहृदय ।
अ० २८
शल्य के स्थानान्तर में हटने पर यथोपयुक्त | दे और चाबुक से घोडे को मारे ज्योंहीं यंत्र से निकाले ।
| घोडा वेग से अपनी गरदन उठावेगा. शल्य इसी तरह अन्यस्थान में लगे हुए दुर:- निकलकर वाहर जा पडेगा, अथवा पंडकी कर्ष शल्यों को भी किसी उपाय से स्था- डाली को झुकाकर शल्य को उससे बांधकर नांतरित करके खींचने का यत्न करे। डाली को छोडद ज्योंही डाली ऊपर को अस्थ्यादि के शल्यों को निकालने की रीति उठेगी शल्य निकल जायगा। अस्थिदृष्टे नरं पद्भयां पीडयित्वा विनिहरेत् दुर्बल शल्य वारंग कुशाओं से बांधकर इत्यशक्ये सुदलिभिः सुगृहीतस्य वि.क.रैः। निकालना चाहिये । जिस वारंग के ऊपर तथाऽप्यशक्ये वारंगं वक्री कृत्य धनुर्व्यया । सुबद्धं वक्त्रकटके वन्नीयासुसमाहितः।।
सूजन आगईहो तो सूजनको युक्तिपूर्वक सुसंयतस्य पंचांग्यावाजिनः कशयाऽथ तम् । ऊँचे को उत्पीडन करके शल्यको खींच ले । ताडयेदिति मूर्धानं वेगेनोन्नमयन् यथा। फूलहुए शल्यका निकालना। उद्धरेच्छल्यम्
मुराहतया नाड्या निर्घात्योत्तुंडितं हरेत् । एवं वाशाखायां कल्पयेत्तरोः तैरेव चाऽनयेन्मार्गममार्गोत्तुक्तिं तु यत् ॥ बध्वा दुवैलवारग मु.शामिः शल्यमाहरेत् । अर्थ-मद्गर वा पाषाणदि से कुटे हुए श्वयथुप्रस्तवारंगं शोफमुत्पीड्य युत्ति.तः।
बुलबुले के समान उठेहुए शल्यको नाडी यंत्र अर्थ-अस्थि में जो शल्य दिखाई देता
से पकड कर निकाले, अथवा अमार्ग में झे तो बलवान् रोगी को पांवों से पीडन
गये हुए शल्यको उक्त रीतिस मार्गमें लाकर करके यंत्रद्वारा शल्य को पकडकर जोर से
| निकालै । खींचले । इस तरह न निकल सके तो
अन्यरीति । बलवान नोकरों से रोगी को अच्छी तरह
मृदित्या कर्णिनां कर्ण नाड्यास्येन निगृह्य वा पकड़वा कर कंकमुख दि यंत्रों द्वारा शल्य को
अयस्कांतेन निष्कर्ण विवृतास्यमृजुस्थितम् पकड कर खींच लेना चाहिये।
अर्थ-वार्णिकावाले शल्य के कणों को ___ इस रीति से भी शल्य न निकले तो दूर करके पंचमुख छिद्रवाले नाडीयंत्र से धनुषको नवाकर उसकी प्रत्यंचा से वारंग पकड़कर बाहर निकाले । विना कर्णवाले ( शल्यादिमय शल्यकी शिखा के आकार | शल्य को जिसका मुख खुला हो ऋजुभाव वाली कीलक ) को अच्छी तरह बांधकर में अवस्थित शल्य को अयस्कांत अर्थात चुंधनुषको छोड देने से शल्य बाहर निकल बक पत्थर से निकाले । आवेगा अथवा पंचांगी बंधन ( चारों हाथ । | विरैकचूषणादि से निकालना। पांव और मुखका बंधन ) से घोड़े को | पक्वाशयगतं शल्य विरेकेण विनिहरेत् । बहुत सावधानी से बांधकर उसकी लगाम | दुटवातविषस्तन्यरक्ततोयादिचूषणैः ॥ भशल्य को ऊपर लिखी हुई रीति से बांध
अर्थ-पक्काशयगत शल्य को विरेचन से
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