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अ० २८
सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत ।
( २२७)
स्रोत.धमनी और अस्थिगतशल्य । । निकलते हैं । मर्मगतशल्य में मर्मविद्ध*के से स्वकर्मगुणहानिःस्यात्स्रोतसांस्रोतासेस्थिते लक्षण होते हैं । धमनिस्थेऽनिलो रक्तं फेनयुक्तमुदीरयत् ॥ ऊपर जो जो लक्षण कहे गये हैं केवल निर्याति शब्दवान् स्याञ्च हल्लासःसांगवेदनः। संघर्षो बलवानस्थिसंधिप्राप्तेऽस्थिपूर्णता॥ इन्ही से त्वगादिगत शल्य के लक्षण नहीं ___ अर्थ-शल्यके स्रोतोंमें प्रविष्ट होनेसे उ- | जाने जाते हैं किन्तु परिस्राव और रूप द्वानके कर्म और गुणकी हानि होजाती है। रा भी शल्यों के लक्षण जानने चाहिये । धमनीगतशल्यमें वायु झागदार रक्तको बा- शल्यका रोहिणादि । हर निकालती है । निकलने में शब्द होता है। रुह्यतेशुद्धदेहानामनुलोमस्थितं तु तत् ।
| दोषकोपाऽभिघातादिक्षोभाद्भूयोऽपिबाधते इसमें हल्लास ( जीमिचलाना ) और अंगवे
___ अर्थ-वमनविरेचनादि द्वारा शुद्ध मनुष्य दना भी होती है । अस्थियों की संधिमें शल्य
के देह में अनुलोमरीति से प्रविष्ट हुए शल्य के जाने पर प्रबल क्षोभ और अस्थियों में
का मुख पुर जाता है, किन्तु ऐसा होने से भरापन हो जाता है।
भा वातादि दोषों के प्रकोप और अभिघाअस्थ्यादिगत शल्य ।
तादि के क्षोभ से उस में फिर पीडा होने नैकरूपा रुजोऽस्थिस्थे शोफः
लगती है। तद्वच्च संधिग।
त्वचा में नष्ट शल्यका परिज्ञान । चेष्टानिवृत्तिश्च भवेत्
त्वङ्नष्टे यत्र तत्र स्युरभ्यंगस्वेदमर्दनैः। आटोपः कोष्ठसंश्रिते ॥ ८॥ रागरुग्दाहसंरंभा यत्र चाज्यं विलीयते ११ आनाहोऽन्नशकृन्मूत्रदर्शनंच व्रगानने। आशु शुष्यतिलेपो वासस्थानंशल्यवद्वदेत् विद्यान्मर्सगतंशल्यं मर्मविद्धोपलक्षणैः ९ ॥
अर्थ-त्वचा के किसी अवयव में शल्य यथास्वं च परिसास्त्वगादिषुविभावयेत्अर्थ-अस्थिगत शल्यमें अनक प्रकारकी
टूट गया हो और दिखाई न देता हो उस वेदना और सूजन उत्पन्न होती हैं ।* संधि
स्थान में अभ्यंग, स्वदेन और मर्दन करने
से ललाई, वेदना, दाह और क्षोभ पैदा गत शल्यमें अस्थिगत शल्यके समान लक्षण
होता है अथवा उस स्थान पर गाढा घृत होते हैं विशेषता यह है कि संधियों की चेष्टा
लगाया जाय तो वह पिघल जाता है, अनिवृत होजाती हैं । कोष्ठगतशल्य में आटोप
थवा कोई लेप किया जाय तो वह शीघ्र आनाह, तथा घावके द्वारा अन्न मलमूत्रादि
+संग्रहमें मर्मविद्धके लक्षण कहे गये हैं। .. +पहिले अस्थि की संधियों में होने वाले | देहप्रसुतिगुरुतासंमोहः शीतकामता। स्वेदो. ब्रण के लक्षण कहे गये थे अब अनुरक्त श- मी वमिः श्वासो मर्मविद्धस्य लक्षणं अरीरकी संधियों के लक्षण कहे गये हैं। रा-र्थात मर्मविद्धमें देहमें शून्यता, भारापन, जयक्ष्मा के निदान में इस का वर्णन किया मोह, ठंडीवस्तु की इच्छा । मूछो, वमन जायगा।
और श्यास ये लक्षण होते हैं ।
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