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अ० २७
सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत ।
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__ पादसिरा व्यध । होने पर थोडी देर स्राव होता है । अच्छी पादे तुसुस्थितेऽधस्तज्जानुसंधेर्निपीडिते। तरह विद्ध न होने पर तेल और चूर्ण लगाढं कराभ्यामागुल्फं चरणे तस्य चोपरि। द्वितीये कुंचिते किंचिदारूढे हस्तबत्ततः॥
गाने से शब्द करती हुई भरती है । आत. बध्धाविध्येत्सिराम् इत्यमनुक्तेष्वपिकल्पयेत् ।
विद्ध होने पर रुधिर की धारा वेग से निकतेषु तेषु प्रदेशेषु तत्तयंत्रमुपायवित् ॥ ३२॥ लती है और कष्ट से बंद होती है। अर्थ-पांवकी सिराको इस तरह वेधते
___रक्तस्राव न होने के हेतु । हैं कि जिस पांवमें फस्दा खोलनी हो उसको । भीम यंत्रशथिल्यकुंठशस्त्रातितृप्तयः॥ धरती पर अच्छी तरह टिकवाकर जानु की क्षामत्ववेगितास्वेदा रक्तस्याऽनुतिहतेवः । संधिसे टकने तक हाथसे अच्छी तरह मर्दन । अर्थ-भय, मूछों, बंधन का ढीला करै और उस पविपर दूसरे पांव को कुछ
होजामा, भोतरा शस्त्र, अतिभोजन,दुर्बलता सुकडवाकर रखदे फिर हस्तसिरी बेधन की मलमूत्रका वेग और पसीने न लेना। इन तरह इस जगह भी वेध्यस्थान से चार अंगु- हेतुओं से रक्तस्राव नहीं होता है । इसलिये ल ऊंची पट्टी बंधवादे ।
रक्तस्राव में इनका परित्याग कर देना __इसी तरह उपायमें कुशल वैद्यको उचि त है कि और और स्थानों की फस्द खोलने सम्यगसम्यक् सावमें कर्तव्य । . के लिये यथायोग्य यत्रोंकी कल्पना अपनी असम्यगने नवति वेल्लव्योपनिशानतैः३६॥ बुद्धि से करता रहे।
सागारधूमलवणंतैलैर्दिह्याच्छिरामुखम् । मांसलदेशमें ब्रीहिमुखयंत्र ।
सम्यक्प्रवृत्ते कोष्णेन तैलेन लवणेन च ३७ मांसले निक्षिपेद्देशे ब्रीवास्थं व्रीहिमात्रकम्।
___अर्थ-रुधिर का स्राव अच्छी तरह न यवार्धमस्थनामुपरिसिरांविध्यन्कुटारिकाम होने पर बायबिडंग, त्रिकुटा, हलदी, तगर
अर्थ-अत्यन्त मांसयुक्त अंगपर व्रीहिमुख | घर का धूआं, लवण और तेल इनको मिला शस्त्रको व्रीहिके समान और अस्थिके ऊपर कर नसके मुख पर लेप करदे । कुटारिका शस्त्रको आधे जौके समान प्रविष्टं सम्यक् स्त्राव होने पर कुछ गरम जल करके सिराका वेधन करै ।
तेल और नमक का लेप करदे । - अतिविद्धाविद्धके लक्षण ।
दृषितरक्तका स्राव । सम्याग्विद्धे नवेद्धारां यंत्रे मुक्त तु न स्रवेत्। अल्पकालं वहत्यल्पं दुर्विद्धा तैलचनैः३४ अग्रे स्रवति दुष्ठात्रं कुसुभादिव पीतिका । सशब्दमतिविद्धा तु स्रवेदुःखेन धार्यते । अर्थ-जैसे लाल और पीला मिले हुए - अर्थ-सिराके अच्छी तरह विधने पर कसूम के फूल से पहिले पीला रंग निकलता रुधिर की धारा निकलती है और बंधन खु । है, इसी तरह बिगडे हुए और शुद्ध रक्त ल, जानेपर धारा बंद होजाती है, अल्पविद्ध में से पहिले बिगडा हुआ रुधिर निकलत हो।
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