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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२२२] अष्टांगहृदये। अ० २७ सिवाय अन्य सिराओं के यंत्रण की यही | ग्रीवास्थित सिरावेध ।। विधि है। यंत्रयेस्तनयोसर्व प्रीवाश्रितसृिराव्यधे ॥ वेधनविधि । अर्थ-यंत्रद्वारा दोनों स्तनों के ऊपर के तथा मध्यमयांऽगुल्या वैद्योऽगुष्ठविमुक्तया | भाग को यंत्रित करके ग्रीवा में स्थित सिरा साडयेत् का वेधन करै । उत्थितां ज्ञात्वा स्पर्शागुष्ठप्रपीडनैः- | कुठार्या लक्षयेन्मध्ये वामहस्तगृहतिया। ग्रीवाकी सिराका व्यध । फलोद्देशे सुनिष्कंपं सिरांतद्वच्च मोक्षयेत । पाषाणगर्भहस्तस्य जानुस्थे प्रसृते भुजे । _ अर्थ-सिरा को ऊपर कही हुई रीति कुक्षेरारभ्य मृदिते विध्येद्वद्धोलपट्टके । से येत्रित करके वैद्य बांये अंगूठे को छोड अर्थ-दोनों हाथोंकी मुट्ठी में दो पत्थर तर्जनी उंगली से ताडन करै, और छूकर के टुकडे दाबकर रोगी अपने हाथोंको लंबा वा अंगूठे से प्रपीडन करके देखे और उठी करके घुटनों पर रखले, तब उसकी कुक्षि से प्रीवा पर्यन्त मर्दन करके और ऊर्ध्वभाहुई नसको फल्लोदेश में निष्कप भाव में ग में कपडे की पट्टी बांधकर ग्रीवा की शिस्थित होकर कुठारी शस्त्र को बांये हाथ में रा का बेधन करे । पकड कर सिरा के बीच में स्थापित करके विशेषरूप से लक्ष कर और लक्ष के स्थिर हाथकी सिराका बेधन । होने पर उक्त शस्त्र द्वारा फस्द खोलदे। विध्येद्धस्तसिराबाहावनाकुचितकूपरे । व्रीहिमुख से फिर बंधना।। बध्वा सुखोपविष्टस्य मुष्टिमंगुष्टगर्भिणीम् ॥ ताडयन् पीडयेश्चनां विध्येहीहिमुखेन तु । | ऊचे वेध्यप्रदेशाच्च पट्टिकां चतुरंगुले । ____ अर्थ-हाथ की सिरा के बेधन का क्रम अर्थ-ब्रीहिमुखशस्त्र से नस को फिर बेधकर अंगूठे से पीडन करै । यह है कि बेध्यस्थान के चार अंगुल ऊपर ... - उपनासिका सिराव्यध । कपडे की पट्टी बांधकर रोगी को सुखपूर्वक अंगुष्ठेनोन्नमय्याऽग्रे नासिकामुपनासिकाम् बैठाकर उसकी मुट्ठी में अंगूठा दबबाकर बा..अर्थ-अंगूठे से नासिका के अग्रभाग | हु को फैला देव । को ऊंचा करके नासिकाकी पासवाली रग पसली और मेढ़कीसिरा । का वेधन करे। विध्येदालंबमानस्य बाहुभ्यां पार्श्वयोःसिराम् जिवास्यसिराका व्यध । | प्रहृष्टे मेहने जंघासिरां जानुन्यकुंचिते। अभ्युनतविदष्टाप्रजिह्वास्याधस्तदाश्रयाम् । अर्थ - रे.गीके हाथों से किसी वस्तु को ___ अर्थ-रोगी की जिहाके अग्रभाग को पकडवाकर दोनों पसलियों की सिरा को बे तालुमें लगाकर वा दांतों से विशेष रूप में | धे । मेढ़ के स्तब्ध होनेपर मेडूकी सिरा को काटकर जिह्वा के नीचे की सिरा का । और जातुको लंबी करा के जंघा की सिरा वेधन करे । | को बेधे । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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