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अ० २६
सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत ।
( २१५ )
अर्थ- आधे आधे अंगुलवाले गोलाकार | वाली कर्णपाली के बेधने में काम आती है। आठ कंटकों से युक्त शस्त्र को खज कहते rotera |
हैं । इसको हाथ से विलोडित करके नासि - जलौकःक्षारदहनकाचोपलनखादयः । का से रक्तस्राव किया जाता है । अलौहान्यनुशस्त्राणि तान्येवं च विकल्पयेत् कर्णव्यधशस्त्र । अपराण्यपि यंत्रादीन्युपयोगि च यौगिकम् । अर्थ - यहां तक प्रधान लौह निर्मित यंत्र और शस्त्रों का वर्णन हो चुका है, वैद्यको उचित है कि बुद्धि से योग्य और अयोग्य का विचार करके इन शस्त्रों को काम में ला । अब लोह वर्जित शस्त्रों का वर्णन करते हैं नोक, क्षार, अग्नि, केश, प्रस्तर (पत्थर ), नखादि अलौह शस्त्रों द्वारा तथा अन्यान्य यंत्रों द्वारा भी शस्त्र कर्म किया जाता है, इसी से इन्हें अनुशस्त्र कहते हैं ।
'व्यधने कर्णपालीनां यूथिका मुकुलानना । २४ अर्थ - कान की पालियों के बेधने के
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निमित्त मुकुल के आकार वाला यूथिका नामक शस्त्र काममें लाया जाता है ।
आराशन । भाराऽर्घागुलवृत्तास्या तत्प्रवेशा तथोर्ध्वतः । चतुरस्रा तया विध्येच्छोफं पक्कामसंशये | २५ कर्णपाली च वहुलाम् ।
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अर्थ-यह आरा नामक शस्त्र अर्धागुल गोल मुखवाला, तथा उस गोलाकार के ऊपर का भाग अधगुल युक्त चतुष्कोण होता है । पक्क और अपक का संदेह हो ऐसे स्थान में इस आरा शस्त्र द्वारा ही सूजन का बेध किया जाता है । अत्यन्त मांसयुक्त कर्णपाली बेधन में यही शस्त्र काम आता है ।
कर्णवेधनी सूची |
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बहुलायाश्च शस्यते। सूवी त्रिभागसुषिरा त्र्यंगुला कर्णवेधनी । २६ अर्थ - चार प्रकार की और सुइयां होती हैं जो कर्णवेधमें काम आती हैं, ये तीन अंगुल लंबी होती है और इनके तीन भाग छिद्रों से युक्त होते हैं । यह बहुत मांस
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शस्त्रों का कार्य ।
उत्पाटयपाटयसव्यैिषलेख्यप्रच्छन्नकुट्टनम् ॥ छेद्यं भेद्यं व्यधो मंथो ग्रहो दाहश्च तत्क्रियाः । अर्थ - उत्पाटन में ऊर्धनयन यंत्र, पाटन में वृद्धिपत्रादि, सेवन में सूची, लेखन में मंडलाप्रादि, भेदन में एषणी, व्यधन में वेतसादि, मंथन में खज, ग्रहण में संदेश और दाह में शलाकादि शस्त्रों का प्रयोग होता है ।
शस्त्रोंका दोष |
कुण्ठखंडतनु स्थूलह्रस्वदीर्घत्ववक्रताः ॥ शस्त्राणां खरधारत्वमष्टौ दोषाः प्रकीर्तिताः । अर्थ - भोंतरापन, टूटापन, बहुत पतलापन, बहुत मोटापन, बहुत छोटापन, बहुत लंबापन, टेढापन, बहुत पैनापन ये आठ दोष शस्त्रों में होते हैं
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