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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२१४) अष्टांगहृदये। अ० २६ नखशस्त्र । वाली तीन अंगुललंबी सुई उपयोगमें आती पार्जुधार द्विमुखं नखशस्त्रं नवांगुलम्। | हैं , जहां मांस कम होता है, तथा अस्थि सूक्ष्मशट्योद्धतिच्छेदभेदप्रच्छन्नलेखने ।१८। | और संधिमें स्थित व्रणोंके सीनेके लिये दों । अर्थ-नखशस्त्र इसे नहरनी भी कहते अगुललंबी सुई काममें लाई जाती है , और हैं । यह दो प्रकार की होती है, एककी धा. तीसरी प्रकार की सुई जो ढाई अंगुल लंबी र टेढी और दूसरी की सीधी होती है । यह धनुष के समान टेढी, और व्रीहिके समान नौ अंगुललंबी होती है । इससे कांटे आदि मुखवाली पक्वाशय, आमाशय और मर्मस्थान छोटे छोटे शल्य निकालेजातेहै । नख काटे के व्रणों के सीने में काम भाती है ॥ जातेहै । भेदन भी कियाजाताहै । कूर्चशस्त्र । सर्ववृत्तास्ताश्चतुरंगुलाः। कों वृत्तकपीठस्थाः सप्ताऽष्ठौवासुबधंनाः दंतलेखन शस्त्र । सयोज्यो नीलिकाव्यंगकेशशातनकुट्टने। एकधारं चतुष्कोणं प्रबद्धाकृति चैकतः। अर्थ -ये सुइयां जो चारों ओरसे गोल, दतलेखनकं तेन शोधयेइंतशर्कराम् ॥१९॥ और लंबाई में चार अंगुल होती है । तथा अर्थ-दंतलेखन शस्त्रमें एक ओर धार होती सात वा आठ एक काष्ठमें दृढरूप से लगी है और दूसरी और प्रबद्ध आकृति होती है । हुई सूची कूर्च कहलाती हैं । ये नीलिका, इसमें चार कोन होते हैं, इससे दांतोंकी श व्यंग और केश, बातादि रोगों में कुट्टन के करा निकाली जाती है । लिये प्रयुक्त की जाती है। सूचीशस्त्र। वृत्तागूढहढाः पाशे तिनःसूच्योऽसीवने । मांसलानां प्रदेशानां व्यस्ता व्यंगुलमायता अल्पमांसाऽस्थिसंधिस्थब्रणानां धंगुलायता। ब्रीहिवक्त्रा धनुर्वक्रा पक्कामाशयमर्मसु।२१। सा सार्धधगुला। अर्थ-सीवन अर्थात् सीनेके लिये तीन प्रकार की सुई बनाई जाती है, ये सुइयां खजशस्त्र । गोल, पाशमें गूढ और दृढ होती है। जहां | अर्धागुलैर्मुखवृत्तरष्टाभिः कटकैःखजः।२३। मांस मोटा होता है वहां बहां त्रिकोण मुख- ( पाणिभ्यां मध्यमानेन घ्राणासन हरेदसक । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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