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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । अ० २४ फजनित पिच्छिलतादि सब प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं । स्नेहनपुटपाक की कल्पना । भूशयप्रसहानूपमदो मज्जावसामिषैः ॥ १४ ॥ • कोहनं पयसा पिष्टैर्जीवनीयैश्च कल्पयेत् । अर्थ - मेकगोधादि विलेशय, गोगर्दभादि प्रसह, महामृग जलचरादि आनूप, इनका मेद, वसा, मज्जा और मांस तथा जीवती काकोल्यादि जीवनीय गण में से " किसी द्रव्य को दूध के साथ पीसकर स्नेहन पुटपाक बनावै । पुटपाकका विधान | खेहपीता तनुरिव क्लांता दृष्टिर्हि सीदति । तर्पणानंतरं तस्मादृग्बलाधानकारिणम् ॥ मृगपक्षियकुन्मज्जावसांऽत्रहृदयामिषै १६ । पुटपाकं प्रयुजीत पूर्वोक्तेष्वेव यक्ष्मसु । मधुरैः सघृतैः स्तन्यक्षीरपिष्ठैः प्रसादनम् । अर्थ - घृतादि स्नेह द्वारा जैसे देह क्लान्त अर्थ - मृग और पक्षियों का यकृत, मज्जा हो जाती है वैसेही स्नेह पानकी हुई दृष्टि वसा, अंत्र, हृदय व मांस घृत और मधुर भी शिथिल हो जाती है । इस लिये तर्पण वक्त द्रव्यों के साथ स्तन्यदुग्ध द्वारा के पीछे तर्पणजन्यरोगों में दृष्टि में बल पीसकर प्रसादन पुटपाक 1 पहुंचाने के निमित्त पुटपाक का प्रयोग पुटपाक की कल्पना । करना चाहिये । | वातादि में स्नेहनादि पुटपाक । स बाते स्नेहनः श्लेष्मसहिते लेखनो हितः ॥ इन्दौर्बल्येऽनिले पित्ते रक्ते स्वस्थे प्रसादनः । अर्थ-वात स्नेहनपुटपाक, कफयुक्त वात में लेखनपुटपाक हितकारी है, तथा | दृष्टि की दुर्बलता में, वातपित्तमें, रक्त में और स्वस्थावस्था में प्रसादन पुटपाक हितकारी है। लेखनपुटपाक की कल्पना । मृगपक्षियकृन्मांसमुक्तायस्तान सैंधवैः १५ । स्रोतोजशख फेनालैर्लेखनं मस्तुकाल्पितैः । अर्थ - मृग और पक्षियों का यकृत वा २६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०१ ) मांस, तथा मोती, लोहा, तांबा, वा सेंधा नमक इनके द्वारा पीसकर लेखनपुटपाक बनावै, यहां जांगल मृगपक्षियों का ग्रहण है । प्रसादनपुटपाक की कल्पना । बिल्वमात्रं पृथक्पिड मांसभेषजकल्कयोः ॥ sonazisभोजपत्रैः स्नेहादिषु क्रमात् । पचेत्प्रदीप्तैरग्न्याभं पक्कं निष्पडिय तद्रसम् । agar मृदा लिप्तं धवधन्वनर्गोमयैः ॥ १८ नेत्रे तर्पणव कुंज्यात् शतं द्वे त्रीणि धारयेत् ॥ १९ ॥ लेखनस्नेहनांत्येषु - पूर्वी कोणी हिमोऽपरः । अर्थ- मांस और औषधका कल्क प्रत्येक बिल्वफल के समान अर्थात् आठ आठ तोला लेकर पीसकर गोलां बनाले | और इस गोले को स्नेहनपुटपाकमें अरंड के पत्तों से, लेखन पुटपाक में बड़ के पत्तों से और प्रसादन पुटपाक में कमल के पत्तों से लपेट देवै फिर इसके ऊपर चारों ओर दो दो अंगुल ऊंची मृत्तिका का लेपन करदे और सुखाले ( कोई कोई काली मूत्तिका के लेपका विधान करते हैं ) फिर इस मृत्तिका सहित गोले को स्नेहनपुटपाक में धौ की लकडी में, लेखनपुटपाक में धामन की लकडी में और प्रसाद पुटपाक में गोवर के उपलों की आगमें रखदे । जब ये गोला अग्नि के For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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