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अ० २४
सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत ।
(१९९)
विधिका उल्लंघन करके शीघ्रता न करै । । लगाने से नेत्रोंके अभितप्त होनेपर पूर्ण पलकों का खोलना, वन्दकरना. वर्मद्वारा प्रत्यंजनको लगाना हित कारकहै । पीडन करना वा क्षालन करना उचित नहीं हैं
इतिश्री अशंगहृदये भाषाटीकायां क्षालन विधि। अपेतौषधसंरंभ निर्वृत नयनं यदा।
त्रयोविंशोऽध्यायः । व्याधि दोषर्तुयोग्याभिरद्भिःप्रक्षालयेत्तदा ॥
अर्थ-औषधका क्षोभ दूर होनेपर जब चतुर्विंशतितमोऽध्यायः । नेत्र व्याधिकी यंत्रणा से रहित होजांय तब अभिष्यन्दादि व्याधि, वातादि दोष और वसंतादि ऋतु के योग्य तयार किये हुए जल
| अथाऽतस्तर्पणपुटपाकविधिमध्याय
व्याख्यास्यामः। से नेत्रों का प्रक्षालन करै ।
अर्थ-अब हम यहां से तर्पण पुटपाक शोधन प्रकार ।
विधि नामक अध्यायकी ब्याख्या करेंगे । दक्षणांगुष्ठकेनाऽसि ततो वाम सवाससा। ऊर्धवमनि संगृह्य शोध्यं वामेन चेतरत् ॥
तर्पण की योजना। पद्मप्राप्तांजनादोषोरोगान्कुर्यादतोऽन्यथा।
“नयनेताम्यतिस्तब्धेशुष्केलक्षेऽभिघातिते __अर्ध-नेत्रों को धोनेके पीछे दाहिने हा
वातपित्तातुरे जिह्मे शीर्णपक्ष्मावलक्षणे १॥
कृच्छ्रोन्मालाशराहर्षशिरोत्पाततमोऽर्जुनैः। थके अंगूठे पर कपडा लपेटकर रोगी के
स्यंदमथान्यतोवातबातपर्यायशुक्रकैः ॥२॥ वांय नेत्रको ऊंचाकरके पोंछ डाले, इसीतरह आतुरे शांतरागाश्रुशूलसंरंभदूषिके । . वाये हाथ के अंगूठे पर कपडा लपेटकर निवाते तर्पण योज्यं शुद्धयोर्मूर्धकाययोः२॥ दाहिनी आंखको पोंछडाले । न पोंछने से
| काले साधारणेप्रातः सायचोत्तानशायिनः । अंजन वर्म में जाकर दोष और खुजली आ
___ अर्थ-नेत्रों के म्लानयुक्त, स्तब्ध, शुष्क, दि रोगों को करता है।
रूक्ष, अभिहत ( चोटलगना ) वातपित्त
से पीडित, कुटिल, शीर्णपक्ष्म ( पलकोंका ____कंडू आदिमें तीक्ष्ण अंजन |
गलकर गिरना, ) और धुंधली दृष्टि होने कंडूजाड्येऽजनं तीक्ष्णं धूमंवायोजयेत् पुनः। तीक्ष्णांजनाऽभितप्तेतु पूर्ण प्रत्यंजन xहितम् ,,
पर, कठिनता से आखों के खुलने पर, अर्थ-अच्छी तरह साफ न होने पर नेत्रों शिराहणे, शिरोत्पात, तम, अर्जुन, अभि. में कंडू और जडताहो तो तीक्ष्ण अंजन वा |
ष्यन्द, मन्थ, अन्यतोवात, वातपर्याय, तीक्ष्ण घूमका प्रयोग करै । तीक्ष्ण अंजन |
और शुक्ररोग से पीडित होने पर तथा
ललाई, पानी पडना, शूल, रोग का वेग, ___ + नेत्रों के अभितप्त होने पर मधुर और दूषिक के शांत होने पर रोगी को और शीतल द्रव्य का जो बहुत वारीक | पिसा हुआ अंजन लगाया जाता है उसे
वातरहित स्थानमें चित्त शयन करावै तथा प्रत्यंजन कहते हैं।
वमन, विरेचन और नस्य द्वारा मूर्छा और
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