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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org अष्टांगहृदये । ( १९२ ) अर्थ - बिना नमक की कांजी शीतवीर्य होतीहै और मुखके स्रावको दूर करती है। क्षारजलके गंडूष | आशु क्षारांबुंगंडूषोभिनत्ति श्लेष्मणश्चयम् । अर्थ- क्षारामिश्रित जल के गंडूष धारण करने से कफका संचय शीघ्रही नष्ट होजाता है । सुखोष्णोदक गंडूष | सुखोष्णोदकगंडूषै जयते बक्त्रलाघवम् । अर्थ- सुहाते हुए गरम जलके गंडूप धारण करने से मुख में हलकापन होता है । गंडूषवारण प्रकार | निबाते सातपे स्विन्नमृदितस्कंधकंधरः ॥ गंडूषमपिवन् किंचिदुन्नतास्यो बिधारयेत् । अर्थ - निर्वात स्थान में जहां धूप चमकती बैठकर स्कंध और कंधराको प्रथम स्वेदित और फिर मृदित करके थोडा मुख ऊंचा करके गंडूष धारण करै परन्तु पीन लैना चाहिये । गंडूषधारण का प्रकार | कफपूर्णास्यता यावत्स्रवघ्राणाक्षताऽथवा असचार्यो मुखे पूर्णे गंडूषः कवलोsन्यथा । अर्थ - जब तक मुख कफसे भरा हो | अथवा नाक और आंख से स्त्राव होता हो तब तक गंडूष धारण करे ( क्रमश: पांच सात बार गंडूप धारण करना उचित है ) द्रव पदार्थ द्वारा मुख इतनाभराहो कि मुखके भीतर का पदार्थ हिलनसके उसे गंडूष कह तेहैं और जो चलसके उसे कवल कहते हैं। मन्यारोगादि की चिकित्सा | मन्याशिरः कर्णमुखाक्षिरोगाःप्रसेककण्ठामयवक्त्रशोषाः । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० २२ हल्ला सतंद्रारुचिपीनसाश्चसाध्या विशेषात्कवलग्रहेण ॥ १२ ॥ अर्थ - मन्यारोग, सिररोग, कानरोग, मुखरोग, नेत्ररोग, प्रसेक, कंठरोग, मुखशोप, हल्लास, तन्द्रा, अरुचि, पनिस, ये सब रोग विशेषकर के कवल ग्रहण से चि• कित्सा के योग्य हैं । प्रतिसारण के भेद | • | कल्को रसक्रिया चूर्णस्त्रिविधं प्रतिसारणम् युज्यात्तत् कफरोगेषु गंडूषविहितौषधैः ॥ अर्थ - प्रतिसारण तीन प्रकार का होता है, जैसे, कल्क, * रसक्रिया और चूर्ण । कफरोगों में प्रतिसारण का प्रयोग शोधन पोक्त औषधों द्वारा किया जाता है । मुखलेपके भेद और प्रयोग । मुखालेपास्त्रधा दोपविषहा वर्णकृच्च सः । उष्णो वातकफे शस्तः शेषेष्वत्यर्थशीतलः ॥ अर्थ - मुखलेप तीन प्रकार का होता है एक दोषघ्न, दूसरा विपन तीसरा वर्णकृत् वातकफरोग में गरम और शेष पित्त वा वात पित्त में अत्यन्त शीतल मुखलेप करना चाहिये | For Private And Personal Use Only मुखलेप के प्रमाणादि । त्रिप्रमाणश्च तुर्भागात्रिभागाधगुलोन्नतिः । अशुष्कस्य स्थितिस्तस्य शुष्को दूषयतिच्छविम् ॥ १५ ॥ तमार्दयित्वाऽपनयेत्तंतेऽभ्यगमाचरेत् । विवर्जयेद्दिवास्वप्नभाया ऽग्न्यातपशुक्क्रुधः x जल से पिसे हुए पदार्थ को कल्क मधु आदि द्रव्यों से पतले किये हुए पदार्थ को रसक्रिया और सूखे पिसे हुए पदार्थको चूर्ण कहते हैं ।
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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