SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अ० २२ www. kobatirth.org सूत्रस्थान भाषाटीका समेत दंत हर्षादि रोग में गंडूष । गंडूष के भेद और विधि | “चतुष्प्रकारो गंडूषः स्निग्धः शमनशोधनौ । दन्तहर्षे दन्तचाले मुखरोगे च वातिके । रोपणश्चसुखोष्णमथवा शीतं तिलकल्कोदकं हितम् ॥ अर्थ - दंतहर्ष, दंतचाल ( दांतों का हि(लना ) तथा बातजन्य मुख रोगों में तिल के कल्क का सुहाता हुआ गरम पानी अथवा शीतल जल हितकारक है । त्रयस्तत्र त्रिषु योज्याश्वलादिषु ॥ १ ॥ त्यो व्रणन: ferralss स्वाद्वम्लप साधितैः । स्नेहै: संशमनस्तिक्तकषायमधुरौषधैः॥२॥ शोधनस्तिक्तंकट्वम्लपद्वष्णै: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१९१ ) सामान्य गंडूष । गंडूषधारणे नित्यं तैलं मांसरसोऽथवा । अर्थ - प्रति दिन गंडूष धारण में तेल अथवा मांसरस हितकारी होता है । रोपणः पुनः । कषायतिक्तकै: मधुगंडूष धारण के गुण । वैशद्यं जनयत्यास्ये संदधाति मुखव्रणान् ७ दाहतृष्णाप्रशमनं मधुगंडूषधारणम् । तत्र स्नेह क्षीरं मधूदकम् ॥ ३ ॥ शुक्तं मद्यं रसो मूत्रं धान्याम्लं च यथायथम् । कल्केयुक्त विपक्वं वा यथा स्पर्शे प्रयोजयेत् ।। अर्थ-कुले करने का नाम गंडूष है, गंडूष चार प्रकार का होता है, यथा, स्निग्ध, शमन, शोधन और रोपण । इन में से पहिले तीन ( स्निन्ध, शमन, शोधन) यथाक्रम वात, पित्त और कफ रोगों में दिये जाते हैं अर्थात् वात में स्निग्ध, पित्त में · शमन, और कफ में शोधन उपयोगी होता है । रोपण गंडूष व्रण में काम आता है इनमें से स्निग्ध गंडूष मधुर, अम्ल और लवण रस से सिद्ध होता है । शमन गंडूष तिक्तकषाय और मधुर औषधों से, शोधन गंडूष तिक्त, कटु, अग्ल लवण और उष्णवीर्यं द्रव्यों से तथा रोपण गंडूष कषाय और तिक्त औषद्वारा सिद्ध होता है । उक्त चारों प्रकार के गंडूपों में घृतादि स्नेह, दूध, मधूदक, शुक्त, मद्य. मांसयूष, मूत्र और धान्याम्ल यथायुक्त कल्कद्वारा मिलाकर बापकाकर ठंडा वा गरम जैसा उपयुक्त हो काम | अर्थ - शहत का गंडूष धारण करने से मुख में विशदता होती है, मुख के घाव भरजाते हैं तथा दाह और तृषा दूर हो जाते हैं । लावें । उषादाहादिक में गंडूष । ऊषादाहान्विते पाके क्षते वाऽऽगसंभवे ॥ विषक्षाराऽग्निदग्धे च सर्पिर्द्धार्य पयोऽथवा अर्थ- ऊषा और दाहयुक्त क्षतपाक में आगन्तुक्षत में तथा विष, क्षार और अग्निदग्ध में घृत अथवा दूध का गंडूष हितकारी होता है । धान्याम्ल गंडूषके गुण | धान्याम्लमास्य वैरस्यमलदौर्गेध्यनाशनम् ॥ अर्थ - धान्याम्ल अर्थात् कांजी के गंडूष धारण करने से मुखकी विरसता, मल और दुर्गंधिको दूर करता है । For Private And Personal Use Only अलवण धान्याम्ल के गुण । तदेवाऽलवणं शीतं मुखशोषहरं परम् ।
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy