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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org अष्टागहृदये । (१९०) वड, गूलर, पीपल, पाकड, लोध इनक छाल, चीनी, मुरहट्टी, कचनार की छाल पद्माख, मजीठ, तथा कूठ और तगर को छोड़कर सब गंव द्रव्य इस में उपयोगी होते हैं । तीक्ष्ण धूमपान के द्रब्य तीक्ष्णे ज्योतिष्मती निशा दशमूलमनोवालं लाक्षाश्वताफलत्रयम् । गंधद्रव्याणि तीक्ष्णानि गणो मूर्धविरेचनः ॥ अर्थ - तीक्ष्ण धूमपान में मालकांगनी, हलदी, दशमूल, मनसिल, हरताल, लाख, श्वेत किन्ही और त्रिफला, आदि गंध द्रव्य कूठ, तगर आदि तीक्ष्ण, द्रव्य और अपामार्गादि संग्रहोक्त शिरोविरेचनीय द्रव्य उपयोग में आते हैं । धूमवर्ति का विधान । जले स्थितामहोरात्रामिषीकां द्वादशांगुलाम् पिष्टैर्धूमौषधैरेवं पंचकृत्वः प्रलेपयेत् ॥ १९ ॥ वरिष्ठ बत्स्थूला यवमध्या यथा भवेत् । छायाशुकां विगर्भात स्नेहाभ्यक्तां यथायथम् धूमनेत्रापिंतां पातुमनिष्ठां प्रयोजयेत् । अर्थ-दाभ की जड़ बारह अंगुल लंबी लाकर चौबीस घंटे तक पानी में पड़ी रक्ख पीछे धूमपान में कही हुई औषधों को पीसकर उस पर पांच बार ऐसी रीति से लेप करै कि अंगूठे के बराबर मोटी होजाय तथा बीच में मोटी रहै और दोनों सिरे पतले हैं, पीछे इस बत्ती को छाया में सु: खाकर इसके बीच में से दाम की जड़को निकाल डाले और यथा योग्य बत्ती पर स्नेह लगाकर चिकनी करे फिर बत्ती के एक सिरे को धूमपान की नली में लगाकर दूसरे सिरे में अग्नि लगाकर घूमपान करै । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० २२ धूमपान का अन्यप्रकार । शरावiपुच्छि नाडीं न्यस्य दशांगुलाम् अष्टांगुलां वा वक्त्रेण कासवान् धूममापिबेत् । अर्थ - खांसी के रोगी के लिये नीचे लिखी हुई रीति से धूमपान करौव एक सरवे (मिट्टी का पात्र ) में स्नेह से चुपडा हुआ कासनाशक चूर्ण वा गोली रख कर उस के ऊपर दूसरा सर्वा रखकर मुख अच्छी तरह बन्द करदे और ऊपर वाले स एक छिद्र करदे और इस छिद्र में बारह अंगुल वा अठारह अंगुल लंबी नली लगादे फिर इस शराव संपुट को दहकते हुए निघूम अंगारों में रखदे, जब इन कासनाशक औषधोंका धूंआं बाहर निकलने लगे तब पूर्वोक्त नल द्वारा मुख से इस धूंए का पान करै । धूमपान का फल | कासः श्वासः पीनसो विश्वरत्वं पूर्तिधः पांडुता केशदोषः । कर्णाऽस्याक्षिस्राववर्तिजाडयं तंद्रा हिध्मा धूमपंन स्पृशति ॥ २२ ॥ अर्थ - खांसी, श्वास, पीनस, स्वरभंग मुख की दुर्गंधि, शरीर का पांडुत्व, केशदोष, कर्णस्राव, मुखस्राव, नेत्रस्राव, खुजली जडता, तन्द्रा, और हिचकी ये सब रोग धूमपान करने से नष्ट होजाते हैं । इति श्री अष्टांगहृदये भाषाटीकायां एक विंशतितमोऽध्यायः । For Private And Personal Use Only द्वाविंशतितमोऽध्यायः । अथाऽतोगंडूपादिविधिमध्यायं व्याख्यास्याम अर्थ - अब हम यहां से गंडूषादि विधिनामक अध्याय की ल्याख्या करेंगे ।
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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