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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० २१ सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । (१८९) धूमपान की विधि । | नाम आक्षेप और मोक्ष है इस तरह तीन अपविष्टस्तच्चताविवृतास्यस्त्रिपर्ययम् ॥ | तीनबार धुंएका आक्षेप और मोक्ष करै । पिधायच्छिद्रमेकैकं धूम नासिकया पिवेत् । दिन में धूमपान की संख्या।। अर्थ-सीधा बैठकर धूमपान में मनलगा| अह्नःपिवेत्सकृत् स्निग्धंद्विमध्यं शोधनं परम् कर मुख खोलकर नासिका के एक छिद्रको | त्रिश्चतुर्बा बन्द करके दूसरे छिद्र से धूम पान करके | अर्थ-दिन में एकबार स्निग्धधूम, दोवार मुखद्वारा निकाल दे । दूसरी वार दूसरे छि- मध्यम धूम और तीन चारवार ताण धूमद्र से पकिर मुखद्वारा निकाल दे । इसी तरह पान करना चाहिये । बार बार कभी इस छिद्र से और कभी मृदु धूमपान । उस छिद्र से धूमपान कर करके मुखक द्वा मृदौ तत्र द्रव्याण्यगुरुगुग्गुलुः । मुस्तस्थौणेयशैलेयनलदोशीरवालकम् ॥ रा धुंआ निकालता रहै । वरांगकौंतीमधुकविल्वमज्जैलवालुकम् । धूमपान का क्रम । श्रीवेष्टकं सर्जरसोध्यामकं मदन प्लवम् ॥ प्रापिबेन्नासयोक्लिष्टे दोषे घ्राणशिरोगते शल्लकी कुंकुम माषा यवाः कुंदुरकं तिलाः । उत्क्लेशनार्थबक्त्रेण विपरीतं तु कंठगे । स्नेहः फलानां साराणां मेदोमज्जावसाघृतम् मुखेनैव वमेधुमं नासया दृग्विघातकृत ॥ अथे-मुदु अर्थात् स्निग्ध धूम में नि. ___ अर्थ-नासिका के दोष अथवा मस्तक | म्नलिखित द्रव्यों का ग्रहण है अगर, के दोष अपने स्थानसे चलित हो गयेहों तो गूगल, मोथा, ग्रंथिपणी, शिलाजीत, जटाप्रथम नासिकपुट द्वारा धूमपान करै । और | मांसी, कालावाला उशीर, नेत्रवाला त्रिफजो दोष स्थानसे चलित न हुए हों तो उन । ला, कूट, रेणुका, मुलहटी, वेलगिरी का के चलित करने के निमित्त प्रथम मुख द्वारा । गूदा, एलुआ, श्रीवेष्टक धूप, राल, रोहिषधूमपान करै । पीछे नासिका पुट द्वारा धू. तृण, मेनफल, गोपालदमनी, शल्लकी, केसर, मपान करे और जो कंठ गत दोष को बाहर उरद, जौ, कुन्दर, तिल, नारियल आदि निकालना हो तो प्रथम नासिका द्वारा फिर का तेल, खैरसारादि का तेल, तथा मेदा मुख द्वारा धूमपान करै । मुख वा नासिका मज्जा, वसा और घृत ये द्रव्य स्निग्धधम द्वारा किया हुआ धगपान मुख द्वारा ही | पान में उपयोगी है । निकालना चाहिये क्योंकि नेत्र द्वारा धुंआं मध्यम धूमपान के द्रव्य । निकालने से तिमिरादि नेत्ररोग पैदा हो | शमने शल्लकी लाक्षा पृङकाकमलोत्पलम् न्यग्रोधोदुंबराश्वत्थप्लक्षरोधत्वचः सिता। जाते हैं । यष्टी मधुः सुवर्णत्वक् पद्मकं रक्तयष्टिका । धूमपान का नियम । गंधाश्चाकुष्ठतगराः ओक्षपमोक्षैः पातव्योधूमस्तुत्रिनिभित्रिभिः अर्थ-शमन अर्थात् मध्यम धूमपान में ___ अर्थ-धूर के खेंचने और छोडने का ] शल्लकी, लाख, इलायची, कमल, उत्पल, For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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