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(१८८)
अष्टांगहृदये।
अ० २१ ।
प्रमेही, तिमिररोगी को तथा ऊर्ध्ववान, | और निद्रा, नस्य, * अंजन, स्नान और उदराधमान, रोहिणी रोग, इनमें विरेचन वमन इनके अंत में विरेचन अथवा तीक्ष्ण वाले को, जिसे वस्ति दीगई हो, जिसने धूमपान करै । मछली, मांस, दही, दूध, शहत, स्नेह, और धूमपान की नलीका स्वरूप । विष खायाहो उसे, तथा सिर की चोटमें,
बस्तिनेत्रसमद्रव्यं त्रिकोशं कारयेदृजु ॥७॥ पांडुरोगमें, और रात्रिभर जागरणमें धूमपान
मूलाग्रेऽगुष्ठकोलास्थिप्रवेशं धूमनेत्रकम् ।
___ अर्थ-वस्ति का नेत्र जिन जिन द्रव्यों का निषेधहै । कोई कोई कहतेहैं कि यबागू।
से बनाया जाता है उन्हीं द्रव्यों (धातु पानके पीछे भी धूमपान न करना चाहिये।
काष्ठ, अस्थि, बांस ) में से किसी एक से धूमपान के उपद्रव और उनकी ।
धूमपान की नली बनवावै । इस में तीन चिकित्सा। रक्तपित्तांध्यवाधियतृणमूमिदमोहकृत्।४॥
पर्व होने चाहिये तथा सीधी होनी चाहिये धूमोऽकालेऽतिपीतो वा... इस के मूलभाग का छिद्र अंगुल प्रबेश के व तत्र शीतो विधिर्हितः।
योग्य और अग्रभाग का छिद्र झाडी बेरके अर्थ-अकाल अर्थात् उपरोक्त निषिद्ध
प्रवेश योग्य वनवावै । काल और स्थलों अथवा अतिमात्र धूमपान
धूमपान के नेत्रकी लंबाई । करनेसे रक्तपित्त, अन्धापन, वहरापन, तृषा, तीक्ष्णस्रेहनमध्येषुत्रीणि चत्वारिपंच च९॥ मूछो, मद और मोह उत्पन्न होते हैं। अँगुलानांकमात्पातुःप्रमाणेनाऽष्टकानि तत् इन उपद्रवों में घृतपान, नस्य, आलेपन
अर्थ-तीक्ष्ण घूमपान के लिये धूमनली और परिषेकादि शीतल क्रिया हितकारी हैं।
की लंबाई पीने वाले के २४ अंगुल के धूमपान का काल ।
तुल्य होनी चाहिये, स्नेहन धूमपान में बक्षुतभितविण्मूत्रस्त्रीसेवाशस्त्रकर्मणाम्॥ | तीस अंगुल की नली और मध्यम धूमपान हासस्य दन्तकाष्ठस्य धूममंते पिबेन्मृदुम् । में नली की लंबाई २० अंगुल होनी
कालेष्वेषु निशाऽहारनावनांतेच मध्यमम् ॥ चाहिये। । निद्रानस्यांजनस्नानच्छदितांतेविरेचनम् +
अर्थ-छींक, जंभाई, मलमूत्रका, त्याग, । * ऊपर नस्य शब्द का दो जगह प्रयोस्त्रीसंग, शस्त्रकर्म, हास्य, और दंतधावन
| ग किया गया है एक जगह नस्य के अंत
में मध्यम धूमपान और दूसरी जगह नस्य इन के अंत में मृदु अर्थात् स्निग्धधूमपान के अंत में तीक्ष्ण धूमपान का उपदेश है करै । * किन्तु इन सब कामों के समय में | इसका यह मतलबहै कि स्निग्ध नस्यमें स्नितथा रात्रि के अंत में, भोजन के अंत में
| ग्ध और तीक्ष्ण नस्यमें तीक्ष्ण धूमपान क
रना चाहिये, तथा मध्यम नस्य में मध्यम और नस्य के अंत में मध्यम धूमपान कर
धूमपान करै । इसी तरह मध्यान्ह के अंत यह कहा गया है अथवा पित्तात प्रकृतिवाले | मे मध्यम धूमपान करै । तथा निद्रा नस्य को बातकफ की वृद्धिमें धूमपान न कराया के अंत में और विरेचन नस्य के अंत में जाय इसके लिये यह कहा गयाहै। बिरेचन धूमपान करै।
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