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म० २१
सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत ।
(१८७)
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बेलागिरी, कमल, दोनों कटेरी, सल्लकी, एकविंशतितमोऽध्यायः । शालपर्णी, प्रश्नपर्णी, वायविडंग, तेजपात, छोटी इलायची, रेणुकबीज, नागकेसर, पद्मरेणु, इन सब द्रव्यों को समान भाग लेकर | अथाऽतोधूमपानविधिमध्यायव्याख्यास्यामः सौगुने आंतरीक्ष जलमें क्वाथ करै । और अर्थ- अब हम यहांसे धूमपान विधि ऊपर कहेहुए सब द्रव्योंके समान तेल लैवे / नामक अध्याय की व्याख्या करेंगे। जब तेलसे दसगुना क्वाथ रहजाय तब उता
धूमपान की आवश्यकता । . रकर पकावै तेल शेष रहनेपर उतारले फिर "जर्व कफवांतात्थविकाराणामजन्मने।
उच्छेदाय च जातानां पिवेडूमं सदाऽत्मवान् उसमें तेलको बराबर क्वाथ मिलाकर पकावै
अर्थ-हिताहार विहार करनेवाले मनुष्य इसतरह दस बार करै अन्तमें जब तेल शेष
को उचितहै कि जत्रुसे ऊपर कफ तथा वायु रहजाय तब उसमें तेलकी वरावरही बकरी
से किसी प्रकारका रोग उत्पन्न न होने पावै का दूध मिलाकर फिर पकावै, फिर तेल |
तथा कोई विकार उत्पन्न होगया हो तो शेष रहनेपर उतार ले, इसतरह सिद्ध किये
उसके शमन के लिये सदा धूमपान करै । हुए इस तेलका नाम अणु तेल है यह तेल
धूमपान के भेद । नस्यद्वारा प्रयोग करने में महा गुणकारी है
| स्निग्धोमध्यः सतीक्ष्णश्व वाते बातकफेकफे और चूंकि यह सूक्ष्मछिद्रों में प्रवेश करता है
अर्थ-स्निग्ध, मध्य और तीक्ष्ण इन इसीलिये इसका नाम अणुतेलहै । भेदोंसे धूम तीन प्रकार का होताहै । वात- नस्य सेवनके गुण । | रोग में स्निग्ध, बातकफमें मध्य, और का घनोन्नतप्रसन्नत्वकस्कंधग्रीवाऽस्यवक्षसः।। में तीक्ष्ण धन का प्रयोग किया जाताहै । हढेद्रियास्त्वपलिता भवेयुर्नस्यशीलिनः ॥
धूम के अयोग्य रोगी। अर्थ- जो मनुष्य नस्यका सेवन करता
| योज्यानरक्तपित्तातिविरिक्तो दरमेहिषु । है उसकी त्वचा, स्कंध, ग्रीवा, मुख और तिमिरोवा॑ऽनिलाऽध्मानरोहिणीदत्तवस्तिषु वक्षस्थल घन, उन्नत और निर्मल हो | मत्स्यमद्यदधिक्षीरक्षौद्रस्नेहविषाशिषु २॥ जातेहैं । संपूर्ण इन्द्रियां बलवती होजाती हैं
शिरस्यभिहते पांडुरोगे जागरिते निशि।
अर्थ-रक्तपित्त * से पीडित, उदररोगी. और केश कुसमय पकने नहीं पातेहैं अर्थात् बुढापे से पहिले सफेद नहीं होतेहैं ।
___+ ऊपर के श्लोक में 'बाते वातको
कफे योज्यः, इस कहनेसे पित्तकी प्राप्ति .. इति भीअष्टांगहृदये भाषाटीकायां ।
ही नहीं है फिर यहां प्रतिषेध करने का
क्या तात्पर्य है । कहतेहैं कि कोई कोई विशोऽध्यायः। वात प्रकृतिवाले को वातपित्त रोगमें भ्रांति
से प्रकृत्यनुरूप चिकित्सा करनेकी इच्छा | से धूमपान बतला देते, इसके निवेधार्थ
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