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अष्टांग |
( १८४ )
एक बार में न दी जा सके बची हुई को दो तीन बार में देदेवे । *
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नस्पजन्य मूर्छा का प्रतिकार मूर्छायां शीततोयेन सिंचेत्परिहरन् शिरः २१ अर्थ - किन्तु यदि औष की तीक्ष्णता के कारण मूर्छा हो तो मस्तक को छोड़कर क्षेत्र सब शरीर पर ठंडे जलका सेचन करे। *
* इसका कारण यहहै कि औवध की हम मात्रा देने से दोष अपने स्थानसे चलित होजाते हैं और बाहर नहीं निकल सकते तथा भारापन, अरुचि, खांसी, प्रसेक, पीनस, वमन और कंडरोग उत्पन्न करदेते हैं । अधिक मात्रा देने से औषध का अतियोग होजाता है सो अतियोगसे होनेवाले बिकार होजाते हैं । जो एक दम सब मात्रा नाक के भीतर प्रवेश करदी जाय तो शिरोरोग, श्लेष्मा, नाकर्मे क्लेद, और स्वासावरोध होजाते हैं अत्यन्त गरम देनेसे दाह, पाकज्वर, रक्तरोग, मूर्छा और श्रम होता है । अतिशीतल देने से हीनमात्रा संबंधी दोष उपजते हैं। अति ऊंचा सिर करके नस्य लेनेसे उत्तहीन दोष होते हैं । अति नीचा सिर करके लेने से औषध बहुत भीतर चली जानेके कारण मूर्छा जडता और ज्वर होते हैं । संकु चितगात्र करके नस्य लेने से वह शिराओं में अच्छी तरह प्रवेश न करके दोषोका उपाड करती है ।
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+ संग्रह में लिखा है कि नस्य लेने के समय क्रोध, हास्य, व्यवहार, उछलना, और नासिका से मल बाहर निकालने की वेष्टा न करै, ऐसा करनेसे शिरोवेदना, श्लेष्मा, खांसी तिमिर, खलित, पलित, व्यंग, तिलकालक, तथा मुखदूषिकादि रोगों का होजाना संभव है ।
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अ० २०
विरेचन नस्के पीछे के कर्म । स्नेहं विरचेनस्यांते दद्याद्दोषाद्यपेक्षया । नस्यांते वाक्शतं तिष्ठेदुत्तानः
धारयेत्ततः ॥ २२ ॥
धूमं पीत्वा कवोष्णांवुकवलान् कंठशुद्धये । अर्थ - विरंचन नस्यके अन्तमें देश, दोष और सात्म्यादि की विवेचना करके म स्तक में स्नेहका प्रयोग करे और वाक्ात ( जितनी देर में सौ की गिनती हो ) सीधा सौनेदे तदनन्तर धूमपान करके कंठकी शुद्धि के निमित्त कुछ गरम जल के कुल्ले करे ।
नरूपके सम्यक् योगका लक्षण | सम्यस्निग्धे सुखोच्छासस्वप्रवोधाक्ष पाटवम् ॥ २३ ॥ अर्थ - मस्तक के सम्यक् स्निग्ध होने पर श्वास का आवगमन मुखपूर्वक होता है नींद गहरीहों अच्छी तरह चैतन्यता रहती है और नेत्रों में चंचलता आजाती है ।
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नस्यका रुक्षयोग |
रुक्षेऽक्षिस्तब्धता शोषो नासास्ये मूर्धशून्यता अर्थ- मस्तक के तीक्ष्ण नस्यसे रूक्ष होनेपर आंखों में स्तब्धता, मुख और नासि - कामें शोष, और मस्तक में शून्यता होती है ।
अतिस्निग्धता के लक्षण | farasrisगुरुताप्रसेकारुचिपीनसाः २४
अर्थ - मस्तक के अतिस्निग्ध होनेपर खुजली, भारीपन, प्रसेक, अरुचि और पीनस ये रोग उत्पन्न होजाते हैं ।
सुविरिक्त और दुर्विरिक्त । सुविरिक्तेऽक्षि लघुतावरवक्रावशुद्धयः । दुर्विरि गोद्रेकः क्षामताऽतिविरेचिने २५