________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अ० १९
सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत
(१८१).
सोंठ काली मिरच आदि द्रव्यों द्वारा सिद्ध | चूर्ण जो नासिका द्वारा सूंघाजाता है वि. किये हुए तथा जिसमें कफनाशक कल्क | रेचननस्य कहलाता है, इसका दूसरा नाम
और क्वाथादिक पडे हों तथा मधु प्रध्मान नस्य भी है। सेंधानमक और आसव द्वारा विरेचन नस्य
. इस चूर्ण को नाकमें चढाने के लिये होता है।
| एक छः अंगुल की लंबी नली बनाई जाती .. जांगल पशुपक्षियों के मांसरस और
| है जिसके दोनों ओर छिद होता है, इसमें रक्तद्वारा तथा खपुर नामक निर्यास विशेष
उक्त चूर्ण भरकर नासिका के छिद्र में द्वारा और पहिले कहे हुए तीक्ष्णतारहित
लगा दिया जाता है, दूसरी ओर से बलस्नेहद्वारा बृंहण नस्य तयार किया जाताहै । पूर्वक फूंक मारी जाती है जिससे चूर्ण इसी तरह पूर्वोक्त अतक्षिण घृतादि स्नेह
नासिका में होकर मस्तक में चढ जाता है मांसरस, दूध वा जल द्वारा शमन नामक
यह चर्ण शिरःस्थ दोषों को अतिशय खींच नस्य होता है।
लाता है। इस विषय में सुश्रुत में बहुत स्पष्ट लिखा है विशेष वृत्तांत जानना हो तो
मर्शस्नेह का परिमाण । वहां देखो। .
| प्रदेशिन्यंगुलीपर्वद्वयान्मन्नसमुद्धृतान् ॥९॥
| यावत्पतत्यसौबिंदुर्दशाष्टो षट्रक्रमेण ते। नस्य के अन्य भेद ।
मर्शस्योत्कृष्टमध्योनामात्रास्ताएबचक्रमात् मर्शश्वप्रतिमर्शश्च द्विधास्नेहोऽत्र मात्रया। बिंदुद्वयोनाः कलकादेःयोजयेन्न तुनावनम् ।
अर्थ-नस्यका स्नेह मात्राभेद से दो अर्थ-तर्जनी उंगली के दी पोरुए धी प्रकार का होता है एक मर्श, दूसरा प्रति | में डुबोकर झट निकालले ऐसा करने से जो मश, इनम कुछ वस्तुका भेद नहीं है। धी एक बार में टपकता है उसे विन्द कह• अवपीड नस्य । ते हैं । ऐसे दस बिन्दु मर्श स्नेह की उत्तम कल्काद्यैरवपडिस्तु ताणैर्मूर्धविरेचनः ॥
मात्रा है । आठ विन्दु मर्श स्नेह की मध्य अर्थ-छींक लानेवाली औषध कल्कादि
मात्राहै और छः विन्दु कनिष्ट मात्रा है । से बनाई जाती है परन्तु उसमें स्नेह नहीं
मर्श की मात्राकी अपेक्षा दो दो विन्दु कम मिलाया जाता है, इसे अवपीड वा शिरो
करने से कल्कादि की उत्तम मध्यम और विरेचन कहते हैं।
कनिष्ठ मात्रा जाननी चाहिये । अर्थात् प्रध्मान नस्य ।
कल्कादि की उत्तम मात्रा आठ विन्दु, मध्यध्मानं विरेचनश्चू! युंज्यात्तं मुखवायुना।। म छः विन्द और कनिष्ट चार विन्दु की पडंगुलद्विमुखयानाडया भेषजगर्भया ॥८॥ | सहि भूरितरंदोषं चूर्णत्वादपकर्षति । ।
होती है। अर्थ-मिरच आदि से बनाया हुआ नीचेलिखे मनुष्यों को नस्य देनी चाहिये
For Private And Personal Use Only