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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० १९ सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । पलमात्रं गुडस्य च ॥४०॥ | न बिना खटाई का वही काथ पस्तिमें भरकर मधुपट्यादिशेषं च युक्तया सर्व तदेकतः। गुदामें प्रयोग करे । इस विषय में अन्य विउष्णांबु कुंभीवाष्पेण तप्तं खजसमाहतम् । | __ अर्थ-वाताधिक्य, कफाधिक्य, पित्ता द्वानों का मत नीचे लिखा जाता है । धिक्य वा स्वस्थावस्था इन सबमें ही कल्क अन्य मत । का प्रमाण अष्टमांश अर्थात् तीन पल स्नेह मात्रां त्रिपलिकां कुर्यात्स्स्रहमाक्षिकयोःपृथक् कर्षार्धमाणिमंथस्य स्वस्थे कल्कपलद्वयम्॥ डाला जाता है । इसका सारांश यह है कि सर्वद्रवाणां शेषाणांपलानिदर्श कल्पयेत् । कल्ककी कल्पना ऐसी होनी चाहिये कि माक्षिक लवणं स्नेह कल्कंक्वाथामतिकमात् जिससे वस्ति अत्यन्त निर्मल वा अत्यन्त | आवपेत निरूहाणामेष संयोजने विधिः।। गाढी न हो। • अर्थ-वस्तिविधिज्ञाता अन्य लोग कहते ___ इसमें गुड एक पल अर्थात् चार तोला । हैं कि स्नेह और मधु ये दोनों अलग अलग ही डाले ( इससे अधिक पित्ताधिक्य में ) तीन तीन पल ले, सेंधानमक आधातोला, मधु और सेंधानमक युक्तिपूर्वक डाले अ- | स्वस्थ पुरुष के लिये कल्क दो पल, बाकी र्थात् शहत चार पल और सेंधानमक एक सब दवा दस पल लेकर नीचे लिखी रीति कर्ष मिलावे । किसी किसी जगह १ तोले से तयार करे । प्रथम एक पात्रमें शहत को जवाखार डाला जाता है इसके सिवाय मथै, फिर नमक मिलाकर मर्दन करै । फिर मांसरस, सुरा, आसव, दूध, कोजी आदि । क्रमसे स्नेह, कल्क और काथ डाल डाल क भी काममें लाये जाते हैं। र मथै । इस अनुक्रम से सब द्रव्योंमें एकसा - तत्पश्चात् सबको इकठा करके बहुत रस हो जायगा । इस विधि से तयार किया गरम जल से भरेहुए घडे में वाष्पद्वारा गरम हुआ द्रव्य निरूहण के उपयोगी होजायगा करै और काठ की कलछी से खूब चलाता निरूहण के पीछेका कर्म । रहे यही क्वाथ वस्ति में प्रयुक्त कियाजाताहै । | उत्ताने दत्तमात्रेतु निरूहे तन्मनाभवेत्४६॥ . कृतोपधानः संजातवेगश्योत्कटकः सृजेत्। ___वस्ति की योजना। ___ अर्थ-निरूह देनेके पीछे उसीपर लक्ष्य प्राक्षिप्य वस्तौ प्रणयेत्पायौनात्युष्णातलम् लगाकर सिरको तकियेपर रखकर साधा लटा नाऽतिस्निग्धंना रूक्षंनाऽतितीक्ष्णं नवामृदु मलका वेग होने पर उकडू होकर मल नात्यच्छसांनोनाऽतिमात्रंनाऽपटुनाऽतिच लवणं तद्वदम्लंच पटत्यन्ये तु तद्विदः ४३॥ | का त्याग करै । अर्थ-इसके पीछे न बहुत गरम, न ठंडा, । निरूह की अवधि । न बहुत चिकना न रूखा, न बहुत तीक्ष्ण आगतौ परमः कालो मुहूर्तो मृत्यवे परम् ॥ न मृदु, न बहुत गाढा न पतला, न थोडा तत्रानुलाोमिकस्रेहक्षारमूत्राऽम्लकल्पितम् त्वरितं स्निग्धतक्षिणोष्णं रस्तिमन्यं प्रपीडयेत् न बहुत; न बहुत खारी न मीठा, न खट्टा धाकलवार्तं वास्वेदनोबासनादि च । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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