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(१७४)
अष्टांगहृदये।
अ० १९
अर्थ-निरूहके पीछे लौट आनेकी परम | हैं सम्यक् निरूहण होने के पीछे रोगी को अवधि एक मुहूर्त होती है। यदि इतनी दे- कुछ गरम जल से स्नान कराके जांगल र में पीछे लौटकर न आवै तो मृत्यु होनेकी मांस रस के साथ चांवलों के भात का संभावना होती है। यदि दो घडीमें न लौटे | पथ्य देना चाहिये, पर मांस रस बहुत गा. तो वहुत शीघ्र स्नेह, क्षार, गोमुत्र,वा कांजी ढा न हो । : वातजन्यविकार की शान्ति आदि द्वारा तयार किया हुआ अत्यन्त स्नि- | के लिये ही प्रायः निरूहण का प्रयोग ग्ध, उष्णवीर्य, उष्णगुगयुक्त और अनुलोमन
किया जाता है इस लिये वात विकार में कारी दूसरी निरूहण वस्ति देवे अथवा अ. उपयोगी मांसरसयुक्त ओदनही पथ्य है । शचिकित्सित प्रकरण में कही हुई फलवर्ती पथ्य का कारण । देनी चाहिये अथवा स्वदक्रिया वा भय आ
विकारा ये निरूहस्य भवंति प्रचलैमलैः ॥
ते सुखोष्णांबुसिक्तस्य यांतिभुक्तवतःशमम् दि दिखाना इनमें से जो होसके शीघ्र करै ।
अर्थ-निरूह के प्रयोग से मल चलाय स्वयंनिरहके निकलनेपर कर्तव्य । मान होकर जो विकार उत्पन्न करते हैं स्वयमेव निवृत्ते तु द्वितीयो बस्तिरिष्यते ॥ वे विकार सुखोष्ण जल से स्नान करके तृतीयोऽपिचतुर्थोऽपि यावद्वा सुनिरूढता।
भोजन करने पर शांत हो जाते हैं । इस __ अर्थ-जो फलवर्ति आदिका प्रयोग कि
लिये स्नान और भोजन करना चाहिये । ये बिन ही यदि निरूहस्वयं पीछा आजाय |
अनुवासन देनेका काल । और निरूहके प्रयोगका फल यथावत् न हो
अथ वातादितं भूयः सद्य एवाऽनुवासयेत्॥ तो दूसरी, तीसरी वा चौथी वस्तिका प्रयोग
अर्थ-निरूहा के पीछे वात पीडित करै अर्थात् जबतक अच्छी तरह निरूहण पुरुषको शीघ्र ही उसी दिन अनुवासन देना न हो चुके तबतक वस्ति प्रयोग किये जाना
चाहिये । चाहिये। किन्तु यदि फलवादि के प्रयोग
अनुवासित के लक्षण । के यत्न विशेष से यदि निरूहण का प्रत्या
| सम्यग्धीनाऽतियोगाश्च तस्य स्युः स्नेहगमन हो तो अन्य वस्ति देने का नियम
पीतवत्। नहीं है।
अर्थ-स्नेहपान की तरह अनुवासन के निरूह के लक्षण और पथ्यादि । | भी सम्यक् योग, हीन योग और अतियोग विरिक्तवच्च योगादीन्विद्यात्
होते हैं । __योगे तु भोजयेत् ॥५०॥
अनुवासनका सम्यक् योग । कोष्णेन वारिणास्रातं तनु धन्वरसौदनम् । किंचित्कालं स्थितो यश्च सपुरीषोनिवर्तते __ अर्थ-सम्यक् निरूढ के वही लक्षण हैं | साऽनुलोमाऽनिलः स्नेहस्तत्सिद्धमनुवासनं जो सम्यक् विरेचन दिये हुए रोगी के होते अर्थ-अनुवासन स्नेह कोष्ट में थोडी
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