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________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (१६८) अष्टांगहृदय । अ० १९ नेत्र की लंबाई । ____ अर्थ-नेत्रके नीचे के भाग की मुटाई "ऊनेऽन्दे पंचपूर्णेऽस्मिन्नासप्तभ्योऽगुलानि- रोगी के अंगूठे के समान और अग्रभाग की षट् ॥ १०॥ मोटाई उसकी कनिष्ठका अंगुली के समान सप्तमे सप्त तान्यष्टौ द्वादशे षोडशे नव । होनी चाहिये । द्वादशेष परविंशात्वीक्ष्य वर्षातरेषुच११॥ वयोबलशरीराणिप्रमाणमभिवर्धयेत् ।। नेत्र के छिद्रका प्रमाण । अर्थ-एक बरस से कम अवस्था वाले | पूर्णेऽब्देऽगुलमादाय तदर्धाऽर्धप्रवर्धितम् । रोगी के लगानवाले यंत्र की लंबाई रोगीके | व्यंगुलं परमं छिद्रं मूलेऽग्ने वहते तु यत् १३ पांच अंगलों के बराबर होनी चाहिये । ए. मुद्माष कलायंचक्लिग्नं कर्कधुकंक्रमात् । क बरस से छः वर्ष के बालक तक छ:अं- ___ अर्थ-अव छिद्र द्वारा नेत्रकी स्थूलता गुल लंबी पिचकारी लगावै । सात बरस से का परिमाण लिखते हैं । एक वर्ष की पूर्ण ग्यारह बरस तक के बालक के सात अंगुल | अवस्था होने पर रोगी की अंगुली के प्रमाकी पिचकारी लगावै । वारह बरस से पन्द्रह ण से नेत्रों के मूलदेश का छिद्र एक अंगुल तक आठ अंगल की। सोलह से बीस बरस | का होवै इस लिये ज्यों ज्यों अबस्था बढती तक ना अंगुल की। इससे ऊपर की उम्र जाय त्यों त्यों नेत्र का छिद्र चौथाई चौथाई वाले को बारह अंगुल लंबी पिचकारी देनी अंगुल बढ़ाकर तीन अंगुल तक कर दिया चाहिये ! किन्तु अवस्था के अनुसार जो | जाता है । अर्थात् प्रथम वर्ष से छः वर्षतक पिचकारी की लंबाई दी गई है वह एक. एक अंगुल, सात वर्षसे ग्यारह वर्षतक सवा साथ ही न वढा देनी चाहिये । जैसे ग्या अगुल, बारहसे पंद्रह तक डेढ अंगुल, सो. रह वर्ष की अवस्था तक पिचकारीकाप्रमाण लह वर्षमें पौने दो अंगुल, सत्रह वर्षमें दो सात अंगुल है तो वारह वरस का | अंगुल, अठारह वर्षमें सवादो अंगुल, उन्नीहोते ही आठ अंगुल की न कर देनी चा- | स वर्षमें ढाई अंगुल, बीस वर्षमें पौने तीन हिये किन्तु जैसे जैसे अवस्था बढ़ती जाय | + खरनादमें लिखाहै “ वस्तिनेत्रमृजु उसी प्रमाण से यंत्र की लंबाई भी वढानी शुक्लं सद्वृतंगुलिकामुखम् । भवेद्वोपुच्छसंचाहिये नेत्रकी लंबाई बढाने के विषय में | स्थानसुप्रवाहं त्रिकर्णिकम् ॥ यात्रिभागप्रण यनमर्यादाकर्णिकाभवेत् । द्वे कर्णिकेचोपरि वय, बल और शरीर पर विशेष ध्यान देना ष्ठाद्वस्त्याधारेऽथवांतरे । स्वांगुष्ठकपरीणाहं उचित है । इस जगह अंगुल ग्रहण से रोगी मूलं नेत्रस्यशस्यते । मध्यत्वनामिकातुल्यके अंगुलों का परिमाण ग्रहण करना मतुल्यकनिष्ठकम ॥ स्पेनांगुलिप्रमाणेनचाहिये । दैय॑स्याद्वादशांगुलम् ॥ कर्कधुप्रवहच्छिद्रं श्रेष्ठमन्यद्यथावयः । विंशहद्वादशषड्वर्षेद्वाद नेत्रकी मुटाई। शाष्टषडंगुलम् । कर्कधु कसतीनाममुखम्स्वांगुष्टेन समं मूले स्थौल्ये नाऽग्ने कनिष्ठया | छिद्रवहं ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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