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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टांगहृदय । - - -- पिबेत् चाहिये कि विरेचन की क्रिया सम्यक् रीति | निग्धोग्णलवणैर्वायौ से हो गई। अर्थ-पित्त की अधिकता में हरीतक्यावमनविरेचन का माप । दि कषाय और द्राक्षादि मधुर द्रव्यों से वि. द्वित्रान्सविट्कानपनीयवेगान्। रेचन दियाजाता है । कफ की आधिकता मेयं विरके वमने तुपतिम् ॥३२॥ __ अर्थ-विरेचन के मल सहित दो तीन में कटुक द्रव्यों से और वात की अधिकता भाग छोडकर पीछे का पदार्थ मापा जाता में एरंड, सैंधव आदि स्निग्ध, उष्ण और है अर्थात् दस्तों की संख्या गिनी जाती है। लवण द्रव्यों द्वारा विरेचन दियाजाता है । विरेचन न होने में कर्तव्य । इसी तरह वमन में पीहुई औषधी का भाग अप्रवृत्तौ तु पाययेत् ॥ ३५ ॥ छोडकर शेषभाग को वमन किया हुआ | उष्णांवु स्वेदयदस्य पाणितापेन चोदरम् । पदार्थ जानना चाहिये । उत्थानेऽल्ये दिने तस्मिन्मुफ्त्वाऽन्येद्युः पुनः वमित को विरेचन । अथैनं वामितं भूयः स्नेहस्वेदशेपपादितम्। ___ अर्थ-औषध पान करने पर यांदे जु. श्लेष्मकाले गते झाप्या कोष्ट सस्यविरेचयेत् लाब न हो तो गरम पानी पिलाना चाहिये अर्थ-वमन कराये हुए मनुष्यको स्नेहन और हाथ गरम करके उसके पेट को सेऔर स्वेदनद्वारा स्निग्ध और स्विन्न करके कना चाहिये । यदि विरेचन के दिन अच्छी कफका काल अर्थात् दिनका पूर्वभाग व्यतीत | तरह दस्त न आवे तो उस दिन भोजन होजाने पर रोगी के कोठे का निश्चय कर करले और दूसरे दिन फिर विरेचन की के कि मृदु है, वा क्रूर है विरेचन देवै । औषध पान करे। . कोष्ठानुसार विरेचन क्रम । अदृढ कोष्ठ में कर्तव्य । बहुपित्तोमृदुःकोष्टः क्षीरेणाऽपिविरेच्यते। अढनेहकोष्ठस्तु पिवेदूध दशाहतः। प्रभूतमारुतःक्रूरःकच्छाच्छयामादिकपि३४ | भूयोऽप्युपस्कृततनुःस्वेदनेहैर्विरेचनमु७६ ___ अर्थ जो कोष्ठ बहुत पित्तयुक्त होता यौगिकं सम्यगालोच्य स्परन्पूर्वमनुक्रमम् । है उसमें गरम दूध पीने से ही विरेचन ____ अर्थ-जिसका कोष्ठ दृढ स्नेहवाला न होजाता है । जिस कोष्ठ में वायु बहुत | हो उसको फिर स्वेद और स्नेह द्वारा शरीर होती है वह क्रूर होता है । इसमें काले को बिरेचन के योग्य करलेवे और पूर्व क. निसोध के देने पर भी कठिनता से जुलाब थित ".मात्रा को अभिमंत्रित करना " होता है । आदि शब्द से कुंकुष्ठ और इत्यादि, दस्त न आवे तो गरम पानी पीना अपि शब्द से आरग्वधादि का ग्रहण है । हाथ गरम करके पेट सेकना इत्यादि अनु. क्रूर कोष्ठके विरेचनमें ये भी दियेआते हैं । क्रम ध्यान में रखकर अच्छी तरह विचार वातादि दोष में विरेचन । | करके दस दिन बीते पीछे विरेचन औषध कषायमधुरैः पित्त विरेकः कटुकैः कफे। | पीना चाहिये । . .. For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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