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(१६.)
अष्टांगहृदय ।
अ० १८
रीति से न होती हो उसको पीपल, आम- । सम्बक वमनका पश्चात् कर्म । ला, सरसों, सेंधानमक इन औषधों को । सम्यग्योगेन वमित क्षणमाश्वास्य पाययेत्। पीसकर गरम जल में मिलावै और इसको धूमत्रस्यान्यतमं स्नेहाचारमथाऽऽदिशेत् ॥
अथे- सम्यकू रीतिसे वमन होबेके पान कराके बार बार वमन करावे । अयोग का लक्षण ।
पीछे थोडी देर रोगी को विश्राम कराके तत्र वेगानामप्रवर्तनम । २३. स्निग्ध, मध्य और तीक्ष्ण इन तीन प्रकार प्रवृत्तिः सविबंधा वा केवलस्यौषधस्य वा। के धूमपानमें से किसी एक प्रकार का धूम अयोगस्तेन निष्ठीषकंडूकोठज्वरादयः। २४ ॥ पान करावै, पीछे स्नेहविधि में कही हुई .. अर्थ- वमन के न होनेका नाम प्रयोग ,
रातिसे गरम जलपान आदि नियमों का है । वेगका प्रवृत न होना अथवा वेग प्रवृत
पालन करावै । होकर वमन न होना अथवा पान की हुई मितव्यक्तिकेलिये पथ्य ।
औषधही वमनके साथ ज्यों की त्यों बाहर ततः सायं प्रभातेवाक्षुद्वान स्वातः सुखांबुना निकल आना वमनका अयोग कहलाताहै । | भुजानोरक्तशाल्यन्नं भजेत्पेयादिकं क्रमम् ॥ वमनका अयोग हानेसे मुखसे थूक बहुत । अर्थ- तदनन्तर दुपहर पहिले वा दुपनिकलताहै, खुजली, पित्ती ( देहपर लाल
हर पीछे भूख लगनेपर वमित व्यक्ति को चकत्ते होजाना ) और ज्वरादिक व्याधि उत्प
सुखोष्ण जलसे स्नान कराके दाऊदखानी व होजाती हैं।
चांवलोंका भात और पेयादि क्रमपूर्वक भांजन सम्यक् योगातियोगका लक्षण ।। करावे। निर्विबंधं प्रवर्तते कफपित्ताऽनिलाः क्रमात्।
पेयादि का क्रम । सम्यग्योगेअतियोगे तु फेनचंद्रकरक्तवत् ॥ |
पेयां विलेपीमहतं कृतम् च. वमितं क्षामता दाहः कण्ठशोषस्तमोभ्रमः।
यूषं रसं त्रीनुभयं तथैकम् । घोरा वाय्वामयामृत्युर्जीवशोणितनिर्गमात्
क्रमेण सेवेत नरोऽन्नकालान्अथ- वमनकारक औषध का सम्यक्
प्रधानमध्यावरशुद्धिशुद्धः॥२८॥ योग होनेसे कफ, पित्त और वायु बिना
अर्थ- प्रधान, मध्यम और हीन इनमें रुकावट धीरे धीरे निकलने लगतेहैं । अति- | से किसी एक प्रकारकी शुद्धिसे शुद्ध हुआ योग होनेसे झागदार चन्द्रका युक्त रुधिर | मनुष्य तीन भोजनकाल, दो भोजनकाल के समान वमन होने लगतीहै, शरीरमें और एक भोजनकालमें पेया, विलेपी, शुंठी कृशता और दाह उत्पन्न होताहै, गला सूख आदिसे संस्कृत यूष, असंस्कृत यूष, संस्कृत जाताहै, आंखोंके आगे अंधेरा और भ्रम हो रस, असंस्कृत रस सेवन करना चाहिये जाता है, भयानक वायुरोग उत्पन्न होजातेहैं। इसका स्पष्टविधान इसतरह है कि प्रधान और जीवशोणित के निकल जानेसे मृत्यु - शुद्धिसे शुद्ध हुए मनुष्यको प्रथम दिन भी होजाती है ।
दोनों भोजन अर्थात् दुपहरसे पहिले और
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