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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ. १५ सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । (१४१) गुल्मरोग, प्रमेह, अश्मरी, पांडुरोग, मेदरोग | पुन्नागीतं मदनीय हेतुः ॥ ३७ ॥ अर्श, कफ तथा वीर्य का नाश करने अंबष्ठा मधुकं नमस्करी नंदीवृक्षपलाशकच्छुराः वाला है। रो, धातकिविल्वपेशिके .. वत्सकादिगण । कवगः कमलोद्भवं रजः ॥३८॥ घत्सकमूर्याभार्गी गणौ प्रियंग्वंबष्ठादी पक्वातीसारनाशनौ । कटुकामरिचं घुणप्रिया च गंडीरम् । संधानीयौ हितौ पित्ते व्रणानामपिरोपणी ॥ एलापाठाजाजी ___ अर्थ-प्रियंगु स्रोतोजन, सौवीरांजन, __ कह्नग फलाजमोदसिद्धार्थवचाः ॥३३॥ | पद्मचारिणी दातार | पद्मचारिणी, पद्मकेशर, मजीठ, जवासा, जी रिकाहंगुविडंगं पशुगंधा पंचकोलकं हति सेमल, मोचरस, मजीठ, रक्तकेशर, चंदन चलकफमेद-पीनसगुल्मज्वरशुलदुनाम्नः अर्थ-इन्द्रजौ, मूर्वा, भाडंगी, कुटकी, और धव यह प्रियंग्वादि गण हैं । मिरच, अतीस, थूहर, इलायची, पाठा, ___पाठा, मुलहटी, बेलगिरी, नंदीवृक्ष, जीरा, अरलुक फल, अजमाद, सफेद सर पलास, धमासा, लोध, धायके फूल, बेल. सों, वच, जीरा, हींग, वायविडंग, अज गिरीकागूदा, श्योना पाठा, कमल केसर, गंध, और पंचकोल । यह वत्सकादिगण यह अंबष्ठादि गणहै। वायु, कफ, मेद, पीनस, गुल्म, ज्वर, शूल इन दोनों गणों के द्रव्य पक्कातिसारऔर अर्श इन रोगों को दूर करता है। नाशक, टूटे हुए स्थानको जोडनेवाले पित्त - वचहारिद्रादिगण । नाशक और घावको पुरानेवाले हैं । पचाजलददेवाहनागराऽतिविषाऽभयाः । मुस्तादिगण हरिद्राद्वययथ्यालकलशीकुटजोद्भवाः ॥३॥ मुस्तावचाऽग्निद्विनिशाद्वितिक्ताघचाहरिद्रादिगणा वामातीसारनाशनौ । ३५ | भल्लातपायत्रिफलाविधाख्याः । युष्ठं त्रुटी हैमवती च योनिमेदःकफाढयपवनस्तन्यदोषनिवर्हणौ ॥६३ स्तन्यामयघ्ना मलपाचनाश्च ॥४०॥ अर्थ-वच, मोथा, देवदारु, सोंठ, अ अर्थ- मोथा, बच, चीता, हलदी, तीस और हरड यह वचादिगण है । दोनों दारुहलदी, कुटकी, काकतिक्ता, भिलावा, हलदी, मुलहटी, प्रश्नपर्णी, इन्द्रजौ, यह हरिद्रादिगण है । इन दोनों गणों के द्रव्य पाठा, त्रिफला, शुक्लकंद, कूठ, इलायची और सफेद बच, । यह मुस्तादिगण योनिरोग मामातीसार, मेदरोग, कफाधिक्य वायु, और दुग्ध रोगोंको दूर करताहै, तथा मल और स्तन्यदोषका नाश करेत । को पकाताहै । पियंगादि. अंबष्ठादि। न्यग्रोधादिगण । प्रियंगुपुष्पांजनयुग्मपमा म्यग्रोधपिप्पलसदाफलरोधूयुग्मपनाद्रजौयोजनवल्लेयनता। . जम्बूद्वयाऽर्जुनकपीतनसोमवल्काः । मानद्रमो मोचरसः समंगा पलक्षाऽब्रवजुलपियालपलाशनंदी For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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