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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४.) अष्टांगहृदये। वीरतरादिगण । श्वेतायुग्मं तापसानां च वृक्षः ॥ २८ ॥ वेल्लंतरारणिकबूकवृषाऽश्मभेद अयमर्कादिको वर्गः कफमेदोविषापहः । गोकंटकेत्कटसाचरवाणकाशाः । कृमिकुष्ठप्रशमनो विशेषाद्रणशोधनः॥२९॥ वृक्षादनीन कुशद्वयगुंटगुंद्रा- ___ अर्थ-आक, सफेदआक, नागदंती, लां भल्लूकमोरटकुरंटकरंभपार्थाः ॥ २४॥ | गली, भाडंगी, राम्ना, वश्चकाली | उष्ट्रवर्गोवीरतराद्योऽयं हंति वातकृतान् गदान । धूमकी 1 कंजा, ओंगा, काकादनी, कंजा, अश्मरीशर्करामूत्रकृच्छाऽघातरजाहरः।२५। श्वेता, महावता ( ये दोनों कोइल के भेद अर्थ-उशीर । खस }, अरनी, बूक [ ईश्वरमल्लिका ], अडूसा, पाखान भेद, हैं । और इंगुदी हिंगोट यह अर्कोदिगण गोखरू, इत्कट [ दीर्घलोहितयष्टिका ],पि कफ, मेददोष, विष, कृमिरोग, कुष्टरोग यावांसा, रामशर, काश, अमरवेल, नल इनको नष्ट करता है और विशेष करके ( नरसल , स्थूलकुश, सूक्ष्मकुश, गुंठ बणको शुद्ध करता है। पटेरा, श्यौनाक, क्षीरमोरटा, कुरंट, उत्तम सुरसादिगण । भरणी,अर्जुन । यह वीरतरादिगण वातजन्य सुरसयुगफणिनं कालमालाबिडंग खरबुसवृषकर्णी कट फलं कासमर्दः। रोग, पथरी, शर्करा, मूत्रकृच्छू, और मूत्रा. क्षवकसरसिभार्गी कामुका काकमाची। घात इन रोगों को दूर करता है । कुलहलविषमुष्टी भूस्तृणो भूतकेशी ३०॥ रोधादिगण । सुरसादिगणः प्रलेष्ममेदः कृमिनिषूदनः । रोध्रशावर करोघ्रपलाशा प्रतिश्यायाऽरचिश्वासकासघ्नो व्रणशोधन जिंगिरलकटफलयुक्ताः । ___ अर्थ- बेततुलसी, कृष्णतुलसी, क्षुद्र. कुत्सिताकदलीगतशोकाः पत्रतुलसी, क्षुद्रपत्रकालतुलसी, वायविडंग, सैलवालुपरिपेलवमोचाः ॥ २६ ॥ मरुआ, 11, कायफल, कसौंदी, एष रोधादिको नाम भेदः कफहरो गणः। । नकछिकनी, तुवुरपत्रिका भाडंगी, रक्तमंजरी, योनिदोषहरः स्तंभी वो विषविनाशनः२७ मकोय, अलंबुसा, वकायन, भूस्तृण, अर्थ-लोध, शावरलोध, ढाक, कृष्णा- | शाल्मली, सरलवृक्ष, कायफल, कदंब, केला, ( अतिछत्रा ) जटामांसी । यह सुरसादिगण अशोक, एलवालक, कुटन्नट, मोचफल, यह कफ, मेदरोग, क्रमिरोग, प्रतिश्याय, अरुचि, रोधादिगण, मेद, कफ और योनि दोषों को | श्वास और कास इन रोगों को दूर करता दूर करता है, यह विष्टंभी, कांतिवर्द्धक और है, तथा व्रण को शुद्ध करता है। बिषनाशक है। मुष्ककादिगण। अकोदिगण । मुष्ककस्नुग्वराद्वीपिपलाशधवशिशपाः। अर्कालको नागदंती विशल्या गुल्ममेहाश्मरीपांडुमेदोऽर्शःकफशुक्रजित् । भार्गी राना वृश्चिकाली प्रकार्या। __ अर्थ-मुष्कक, थूहर, त्रिफला, चीता, प्रापापी पीतलोइकीर्या ढाक, घास, शीशम यह मुष्ककादिगण For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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