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अ० १५
सूत्रस्थान भाषाठीकासमेत ।
(१३९)
__ गुडूच्यादि गण। नवृक्ष, पूतिकरंज, खैरसार, कदर ( खैरगुडूचीपनकारिष्टधानका रक्तचन्दनम् । सारकी आकृतिवाला श्वेतसार ), सिरस, पित्तश्लेष्मज्वरच्छर्दिवाहतृष्णाघ्नमाग्निकृत्। शिशपा. मेढासंगी, त्रिहिम ( सफेदचंदन, - अर्थ-गिलोय, पदमाख, नीम, धनियां, रक्तचंदन, ये गुडूच्यादि गण पित, कफ,
रक्तचंदन, पतिचंदन ) ताड, ढाक, अगर, घर, वमन, दाह, तृषा इनको नष्ट करता
वरदारु, शाल, सुपारी, धायके फूल, इन्द्रजौ,
अजकर्णी, अश्वकर्णी, यह भसनादि गण है और जठराग्निको बढाता है। आरग्वधादि गण।
श्वित्रकुष्ठ, कफ, मिरोग पांडुरोग, प्रमे, भारग्बधंद्रयवपाटलिकाकतिक्ता
तथा मेदसंबंधी दोषों को दूर करता है । निंबाऽमृतामधुरसास्रववृक्षपाठाः ।
वरणादि गण ॥ भूनिवसर्यकपटोलकरजयुग्म
घरणसैर्यकयुग्मशतावरी सप्तच्छाऽग्निसुषवीफलबाणघोटाः१७
दहनमोरटबिल्वबिषााणकाः ।। भारग्वधादिर्जयति छर्दिकुष्ठविषज्वरान् ।।
द्विवृहतीद्विकरंजजयाद्वयं । कर्फ कंडूं प्रमेहं च दुष्टव्रणविशोधनः ॥ १८
बहलपल्लवदर्भरुजाफराः ॥ २१ ॥ अथे-आरग्वध ( शम्याक ), इन्द्रजौ,
वरणादिः कर्फ मेदो मंदाग्नित्वं नियच्छति ।
अधोवातं शिरःशूलं गुल्मं चांतःसविद्रधिम् पाटलापुष्प, काकातक्ता ( बसंत दूती )
अर्थ-वरना, दोनों सहचर । एक लाल नीम, गिलोय, मूर्वा, कटेरी, चिरायता, पि
पुष्पवाली जिसे कुरवक कहते हैं, दूसरी पीयावांसा, परवल, दोनों कंजा, पूति करंज
ले फूलवाली जिसे कुरंटक कहते हैं ), और चिरविल्य ), सप्तच्छद ( सातला ),
मितावर, चीता, मूळ, विल्व, अजश्रृंगी चीता, सुपपी ( कालाजीरा )करला, पानी
बडी कटेरी, छोटी कटेरी, दोनों कंजा,दोनों यवल्ली और मेंढासीगी), मेनफल , रामसर
जया ( जीवंती और हरीतकी ), सहजना, घोंटा ( सुपारीविशेष ) यह आरग्वधादिगण
कुशा, और हिंताल, यह वरणादिगण कफ, वमन, कोट, विष, उपर, कफ, खुजली,
मेददोष, अग्निमांय, अधोवायु, शिरशुल, प्रमेह इनको दूरकरता है और बिगडे हुए
गुल्म और अंतर्विद्रधि को दूर करता है । घाव को शुद्ध करता है।
ऊरकादिगण। असनादि गण ।
ऊषकस्तुत्थकं हिंगु कासासद्वयसैंधवम् । असनतिनिशभूजश्वेतवाहप्रकीर्या- सशिलाजतु कृच्छ्राश्मगुल्ममेदः कफापहम्। खदिरकदरभंडीशिशपामेषशंग्यः । ।
अर्थ-ऊषक ( खारी मृतिका ), नीला त्रिहिमतलपलाशा जोगकः शाकशाली- योगा ही दोनों
| थोथा, हींग, दोनों कसीस [ पांशुधातुनामक क्रमुकधवकुलिंगच्छागकर्णाश्वकर्णाः १९ | असनादिजियते श्वित्रकुष्ठकफक्रिमीन् । भारत
और पुष्पनामक ], सेंधानमक, शिलानीपांडुरोगं प्रमेहं च मेदोदोषनिबर्हणः ॥२०॥ त यह ऊषकादिगण मूत्रकृच्छ, पथरी, गुल्म - अर्थ-पतिशाल, तिनिश भोजपत्र, अर्जु मेदरोग, और कफ को नष्ट करता है ।
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