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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३८) अष्टांगहृदये। अ० १५ विदारीगण। प्रीणनजीवनबृहणवृष्याः ॥१२॥ विदारिपञ्चांगुलवृश्चिकाली अर्थ-पदमाख, प्रपौंडरी (कमलविशेष), वृश्चीवदेवाहूयशूपपर्यः । श्रावणी, वंशलोचन, ऋद्धि ( महाश्रावणी), कंकरी जीवनबस्वसं. काकडासींगी, और गिलोय ये सब तथा द्वे पंचके गोपसुता त्रिपादी ॥९॥ विदार्यादिरयंडद्यो वृहणो दातपित्तहा। पूर्वोक्त जीवनीयगणान्तागत दस औषध दध शोषगुल्मांऽगमर्दोर्ध्वश्वासकासहरो गणः॥ | को बढानेवाली, वातपित्तनाशक, प्रीतिज अर्थ-विदारीकंद, अरंड, मेढासिंगी, नक, जीवनहितकर, पुष्टिकारक और शुक्र सफेदसांठ, देवदारु, ( किसी किसी पुस्तक | वद्धक है । में देवाद्वय पाठभी है वहां एक सहदेवा, तृषादिनाशक औषध । दूसरी विश्वदेवा समझनी चाहिये ), शूर्प- परूषकंवराद्राक्षाकट्फलं फतकात्फलम् । राजाहूं दाडिमं शाकं तृणमूत्रामयवातजित् १३ पर्णी, मुद्गपर्णी तथा माषपर्णी, कोच, जी- अर्थ-फालसा, त्रिफला, [ किसी २ वनसंज्ञकपंचमूल ( शतमूली, क्षीरकाकोली, | के मत में दाख ] द्राक्षा, कायफल, निर्मजीवंती, जीवक और ऋषभक ) ह्रस्वपंच- ली, अमलतास, अनार, और शाकवृक्ष, ये मूल (वृहती, कंटकारी, शालिपर्णी पृश्नि | तृषा, मूत्ररोग और वातनाशक हैं । • पर्णी, गोखरू ), अनंतमूल, हंसपादी, इन विषादिनाशक । सबको विदारीगण कहते हैं । ये हृद्य, वृंहण अञ्जनं' फलिनी मांसी पद्मोत्पलरसांजनम् वातपित्तनाशक, शोध, गुल्म, अंगमर्द, ऊ- सैलामधुकनागाहूं विषांतहपित्तनुत् १४॥ वश्वास, और कास इन रोगोंको दूर कर. अर्थ-अंजन ( स्रोतोजन और साबीरानेवाले हैं ॥ जन ), प्रियंगु, जटामांसी, पद्म, उत्पल, . सारिवादि गण । रसौत, इलायची, मुलहटी और नागकेसर, सारियोशीरकाश्मर्यमधूकशिशिरद्वयम । ये विष, अंतदोह और पित्तनाशक है। यष्टीपरूषकं हंति दाहपित्ताऽस्रतृड्ज्वरान् ॥ कफादिनाशकद्रव्य । अर्थ-अनन्तमूल, खस, गंभारी, महुआ, पटोलकटुरोहणी चन्दनंसफेदचंदन, लालचंदन, मुलहटी, और फा- मधुम्रवगुडूविपाठान्वितम् । लसा इनको सारिवादिगण कहते हैं । ये निहति कफनित्तकुष्ठज्वरान् विषं वमिमरोचकं कामलाम् ॥ १५ ॥ दाह, रक्तपित्त, तृषा और ज्वर को नाश अर्थ-परवल, कुटकी, चंदन, मधुस्रव, करते हैं। ( गंधसार ), गिलोय, और पाठ, यह दुग्धवर्द्धक द्रव्य । पटोलादि गण कफ, पित्त, कोढ, ज्वर, पद्मकपुंड्री वृद्धितुग:शूग्यमृता दश जीवन संशाः विषरोग, बमनरोग, अरुचि और कामला इन स्तन्य करा नंतीरणपित्त रोगों को दूर करता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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