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(१३२)
अष्टांगहृदयम् ।
अ० १४
विपरीत लंघन है । लंघन के शोधन और | लिखित उपचार द्वारा वृंहण अर्थात् शरीर शमन दो भेद कहे गये हैं । दुग्धादि कई | वर्द्धन करै । पदार्थ ऐसे हैं जो वृंहण हैं परन्तु इनका वृंहण औषध । स्वाभाविक धर्म शोधन भी है इसलिये ये मांसक्षीरसितासर्पिमधुरभिग्धवस्तिभिः॥ योधन भी है । अब यह शंका होती है कि स्वप्नशय्यासुखाऽभ्यंगस्नाननिर्वृतिहर्षणैः।
___ अर्थ- वृंहणके योग्य मनुष्यों को मांस जो शोधन है वे केवल वायु और पित्तयुक्त
दूध, शकर, घृत ये खानेको दे, मधुर और वायु. के प्रकोपक होते हैं तब दुग्धादि किस
स्निग्ध वस्तियां देकर वृंहण करै । गहरी तरह शमन हो सकते हैं । इस शंका को
नींदमें अच्छे पलंग पर सौना, तैल मर्दन दूर करने के लिये मूल श्लोक में विशेष
करना, स्नान करना, चित्तमें किसी प्रकार णार्थ 'तु' और अवधारणार्थ 'एव' शब्द
का उद्वेग न होना, तथा हर्षजनक प्रयोग का प्रयोग किया गया है, इस से यह विशेष
आदि ऐसे कर्मोंसे वृंहण होताहै । अर्थ निकलता है कि शोधन स्वभाववाले
लंघनके योग्य मनुष्य । वृहण द्रव्य ही केवल वायु और पित्तयुक्त |
मेहामदोषाऽतिस्निग्धज्वरोरुस्तमकुष्टिनः ११ वायु के शमन होते हैं किन्तु शोधन रूप विसर्पविद्रधिष्ठीहशिरः कण्ठाऽक्षिरोगिणः। लंघन केवल वायु और पित्तयुक्त वायु के स्थूलांश्च लघयोन्नित्यं शिशिरेत्वपरानपि॥ शमन न होकर शोधन तथा कोपन होजा अर्थ- प्रमेह रोगसे पीडित, आम दोष , हैं । सारांश यह है कि वृंहण और शोधन वाला, जिसने अत्यन्त स्नेहपान किया हो, केवल वायु और पित्तयुक्त वायु के शमन हैं । ज्वररोगी, ऊरुस्तंभ रोगवाला, कोढी,विसर्प किन्तु लंघन और शोधन केवल वायु और रोगी, विद्रधि रोगवाला, तापतिल्लीवाला पित्तयुक्त वायु के कोपन हैं।
जिसके मस्तक, कंठ और नेत्रमें रोगहो, बृंहण के योग्य मनुष्य ।
तथा स्थूल मनुष्यको सदा ही लंघन द्वारा बृहयेद्वयाधिभषज्यमद्यस्त्रीशोककर्शितान् । चिकित्सा करै । परन्तु शिशिर ऋतुमें तो भाराध्वोरःक्षतक्षीणरुक्षदुर्बलवातलान् ८॥
सब रोगवालोंकी ही चिकित्सा लंघन अर्थात् गर्भिणीसूतिकाबालवृद्धान् ग्रीष्मेऽपरानपि।
अपतर्पण द्वारा करै । अर्थ- जो मनुष्य व्याधि, भय, स्त्री
शोधनका निरूपण ।। संगम और शोकसे कृश होगयाहै, जो भारतत्रसंशोधनःस्थौल्यवलपित्तकफाऽधिकान् ढोनेसे, मार्ग चलनेसे, तथा उरःक्षत ना- आमदोषज्वरच्छर्दिरतीसारहदामयैः।। १२ ॥ मक रोगसे क्षीण होगयाहै, जो रूक्ष, दुर्बल | विबंधगौरवोद्गारहल्लासादिभिरातुरान् । वात प्रकृतिवालाहै तथा गर्भवती स्त्री, नव
मध्यस्थौल्यादिका प्रायः पूर्व पाचनदीपनैः प्रसूता, बालक और वृद्ध का तथा ग्रीष्म
एभिरेवाऽऽमयरातान्हीनस्सौल्यवलादिकान्
क्षुत्तृष्णानिनहेर्दोषैस्त्वार्तान्मध्यवलै ढान्१४ ऋतुमें तो अन्यान्य रोगियोंका भी निम्न समीरणातपाऽऽयासैःकिमुताऽल्पबलैनरान्
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