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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३०) अष्टांगहृदये। अ० १४ ग्रासे प्रासे [ मास मास में मिलाकर औषध । मिलाकर वा दो दो प्रासके बीच में औषध खाना , (७) मुहुर्मुहुः ( भोजन करके | सेवन करनी चाहिये । बिष, वमन, हिचकी, या विना भोजन करे थोडी थोडी देरके अ- तृषा, स्वास, कासादि रोगोंमें बार बार औ• न्तरसे औषध सेवन ), (८) मान्न । षध दैनी चाहिये । अरुचिमें अनेक प्रकार ( आहार के साथ औषध सेवन ), (९) के खाद्य पदार्थोंके साथ औषध देव । कंपसामुद्ग। आहार के पहिले और पीछे औ- नवायु, आक्षेपक, और हिक्का रोग लघुषध सेवन ), (१०) निशि ( रात्री में भोजन करे और आहार के पहिले और पीछे सोनेके समय )। औषध देवै । कंठसे ऊपर वाले रोगों में रोगपरत से औषधकाल । रातमें सोने के समय औषध दैना उचितहै । कफोद्रके गदेऽनन्न वलिनो रोगरोगिणोः । अन्नादौ विगुणेऽपाने समाने मध्य इष्यते ॥ इतिश्रीअांगहृदये भाषाटीकायां व्यानेऽते प्रातराशस्य सायमाशस्य तूत्तरे । त्रयोदशोऽध्यायः ॥ १३ ॥ प्रासग्रासांतयोः प्राणे प्रदुष्टे मातरिश्वनि । मुहर्मुहुर्विषच्छदिहिध्मातृश्वासकासिषु । योज्यं सभोज्यं भैलोज्यश्चित्रैररोचके . चतुर्दशोऽध्यायः । कम्पाक्षेपकहिमासु सामुर्मूलघुभोजिनाम् । ऊर्ध्वजत्रुषिकारेषुस्वप्नकाले प्रशस्यते ॥ - re__ अर्थ-यदि रोग और रोगी दोनों बल- अथाऽतोद्विविधोपक्रमणीयमध्यायं ब्यावान हों तो कफ की अधिकता वाले रोग में | ख्यास्यामः। अनन्न औषध देये अर्थात् भोजन करने से अर्थ- अब हम यहांसे द्विविधोपक्रमणीय बहुत पहिले औषध देनी चाहिये जिससे [ दो प्रकार की चिकित्सा का वर्णन है जि-' औषधं पचनाय क्योंकि अनन्न औषध अति | समें ] अध्याय की व्याख्या करेंगे । वीर्य होती है । अपान वायु के प्रकुपित होने दो प्रकारके उपचार । पर आहार के करने से पहिले औषध सेवन उपक्रम्यस्य हि द्वित्वाहिधैवोपक्रमो मतः । करे अर्थात् औषध सेवन करते ही भोजन एकः सतर्पणस्तत्र द्वितीयश्चापतर्षण १॥ वृहणो लघनश्चति तत्पर्यायावुदाहृता । करले । समान वायुके प्रकुपित होने पर भो बृहणं यवृहत्त्वाय लंघनं लाघवाय यत् ॥ जनके बीच में औषध सेवन करे । व्यान वायुके कुपित होने पर भोजन के अंत में भवतः प्रायो भौमापमितरच ते । प्रात:काल का भोजन करते ही औषध सेवन " अर्थ- चिकित्सा के योग्य विषय दो करे उदान वायुके कुपित होनेपर सायंकालका | प्रकार का है, इसलिये चिकित्सा भी दो प्रकाभोजन करने के पीछे औषध सेवन करे।। रकी होतीहै, एक संतर्पण, दूसरी अपतर्पण प्राणवायु के कुपित होनेपर ग्रास ग्रास में | संतर्पण का पर्यायवाची शब्द बृहण है और For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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