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अ० १३
सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत ।
(१२७ ]
.. अर्थ-साम अर्थात् आमसहित मल के | हलाते हैं । जैसे सामज्वर, निरामज्वर (इलक्षण यह हैं कि मलवाहिनी शिराओं का नका विशेष विवरण उवरके प्रकर्ण में अबरोध, वलकी हानि, शरीर में भारापन, होगा )।+ वायु की स्तब्धता, आलस्य, आहार का न बाहर न निकालने योग्य सामदोष। पचना, मुख से लार गिरना, मल की रुका- सर्वहप्रविसृतान् सामान दोषान्न निर्हरेत् । वट, अन्न में अरुचि, और ग्लानि । जो लीनानधातुप्यनुक्लिष्टान्फलादामादसानि। आमरहित मल हो तो उसके लक्षण इससे आश्रयस्य हि नाशाय ते स्युर्दुर्निर्हरत्वतः । विपरीत होते हैं जैसे स्रोतों की खुलावट,
___ अर्थ -सामदोष जो संपूर्ण देहमें व्याप्त वलवचा आदि।
होगये हों, रसरक्तादि धातुओर्मे लीन हों आम का लक्षण।
और अपने स्थानसे चलित न हुए हों उन उष्मणोऽल्पबलत्न धातुमाद्यमपाचितम। को वमन विरेचनादि द्वारा वाहर न निकादुष्टमामाशयगतं रसमाम प्रचक्षते ॥ २५ ॥ लना चाहिये । क्योंकि इनका निकालना
अर्थ-जठराग्नि की दुर्वलता के कारण | बहुत कठिन है, जैसे कच्चे आममें से रस विना पका हुआ और वातादि दोष से दू- निकालने का प्रयत्नकरने से फलका नाश षित हुआ आमाशयगत रस नामक प्रथम
होजाता है, वैसेही आमके निकालने से धातुको आम कहते हैं।
शरीरका नाशहो जाता है। अन्यमत ।
आमदोषमें कर्तव्य । मन्येदोषभ्यएवातिदुष्टेभ्योऽन्योन्यमूर्च्छनात्
नात् पाचनपनःस्रहस्तानस्वेदैश्च परिष्कृतार कोद्रवेभ्यो विषस्येव वदत्यामस्य संभवम् ॥
" शोधयेत् शोधनैःकाले यथासनं यथावलम् अर्थ-इस विषय में अन्य आयुर्वेदा
___ अर्थ-ऐसे रोगमें यह करना चाहिये चार्यों का यह मत है कि अत्यन्त बिगडे कि ज्वराध्यायमें कहे हुए, तथा जठराग्निको हुए बातादिक दोष आपस में मिलजाते हैं
प्रदीप्तकरनेवाले पाचन द्रव्य, स्नेहन और तब आमकी उत्पति होती है जैसे कोदों धान्य से विपकी उत्पत्ति कही गई है । ___+ आम के लक्षण अन्यत्र इस तरह
लिखे है:-द्रवं गुर्वनेकवर्ण हेतुः सर्वरोगाणां सामका अर्थ ।
निग्धपिच्छिलमातंतुमदतुवद्धशूलंदुर्गधी आमेन तेन संपृक्ता दोषा दूच्याश्च दूषिताः। | त्यादि । सामलक्षणानिः- वायुरामान्वयः सामा इत्युपदिश्यते ये च रोगास्तदुद्भवाः सातिराध्मानकदस्तंचरः । दुर्गन्धमासंतं . अर्थ-वातदिदूषित और आमसंयुक्त जो पित्तकदुकंबलहंगुरु आविलस्तंतुमांस्त्यानः
प्रलेपीपिच्छिलः कफः। विपर्ययेतु पक्वत्वं । दोष और दूष्य पदार्थ हैं उन्हें साम कहते
तथाता समेचक्रम् । पीतंच पितमच्छंचहैं और जो रोग वातादिक दोषोंसे उत्पन्न |
श्लेश्माच्छः पिंडितोऽथवा।विशदश्च सफेहोते हैं पर वे आमसे युक्त हों तो साम क- नश्चधवलोमधुरोरस इति ॥
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