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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२२) अष्टांगहृदये। अ० १२ क्षाणतर पित्तक्षीणतम, बातक्षीण पित्तक्षीण | ताका कारण है अर्थात् बात पित्त कफ ये तर कफक्षीणतम, पित्तक्षीण बातक्षणितर | तीनों अपने अपने प्रमाणसे रहे आवें । ऊकफक्षीणतम । इसतरह ये पच्चीस भेद हैं। पर कहे हुए ६२ भेदही रोगके कारण हैं | क्षयवृद्धि और समताकेभेद। इससे यह मतलब निकलता है कि दोषोंकी एकैकवृद्धिसमतामयैः पद ते पुनश्च षट । विषमता ही रोगका हेतु है । एकक्षय द्वन्द्ववृद्धा सविपर्यययाऽपि ते । दोषभेदों में असंख्यता। भेदाद्विवष्टिनिर्दियात्रिषष्ठिःस्वास्थ्यकारणं। संसर्गाद्रसरुधिरादिभिस्तथैषां अर्थ-सन्निपातस्थ तीन दोषों में से एक दो दोषांनुक्षयसमतावि वृद्धभेदैः । षकी बृद्धि, एक दोषकी समता और एक दो आनत्यं तरतमयोगतश्च यातात् ॥ पकी क्षीणता से छः भेद होते हैं। जैसे- जानीयाद्वहितमानसो यथास्वम् ॥ ७८ ।। [१] बातबृद्ध,पित्तसम, कफक्षीण । (२) अर्थ-दोषोंकी वृद्धि और क्षीणता से जो पित्तवृद्ध । बातसम । कफक्षीण । ( ३ )कफ ६२ भेदकहे गयेहैं यह केवल दिग्दर्शन मात्र वृद्ध । पित्तसम । बातक्षीण । ( ४ )कफवृद्ध। हैं । इनसे नये विद्यार्थियों को दोषोंकी व्युत्पबातसम । पित्तक्षीण । (५)बातबृद्ध । कफ त्तिका केवल मार्ग दिखाया गया है । नहीं सम | पित्तक्षीण । (६)पित्तवृद्ध, कफसम । | तो रसरक्तादि सातधातुओं के संसर्ग, उन बातक्षीण । की क्षय, वृद्धि और समता तथा तारतम्यके इसीतरह एकदोषका क्षय और दो दोषोंकी अनुसार दोषोंके अनन्त भेद होते हैं । इस वृद्धिसे तीन प्रकार और इनके विपरीत भा लिये बहुत सावधानीसे विवेचना पूर्वक चि बसे अर्थात् दो दोषोंकी क्षीणता और एक कित्सा करनेमें प्रवृत्त होना चाहिये । दोषकी वृद्धिसे तीनप्रकार कुल मिलकर छः रसादि के संयोगसे जो दोषोंके भेद होते हैं भेद होते हैं । जैसे ( १ )बातक्षीण । पित्त | उनका दिग्दर्शन इसतरह है कि पृथक् २ कफवृद्ध । ( २ )पित्तक्षीण । वातकफवृद्द । रसवातपित्त कफकी वृद्धिके तीन भेद । दो ( ३ )कफक्षीण, बातपित्तवृद्ध । ४ )वातपि दो के संसर्गसे नौ । और सन्निपात के ते त्तक्षण, कफवृद्ध । (५ बात कफक्षीण,पित्त रह | सब मिलाकर पच्चीस हुए । फिर रवृद्ध । [६]पितकफक्षीण, बातवृद्ध । इसन- सादिकी क्षीणत से पच्चीस । फिर तारतम्य रह सन्निपात में दोपोंके वृद्धिक्षयभेदसे दोषों भेदसे बारह और अपने प्रमाण में स्थित रस के रूपान्तर होजाते हैं। वात पित्त कफ का एक इस तरह रसके संयोग इनमें वृद्धि भेदसे पच्चीस, क्षयभेदसे, पच्ची | से ६३ भेद हुए।इस तरह रक्त मांसादिके संयोग स, तथा क्षयवृद्धि और समानभेदसे बारह | से जानने चाहिये । इसतरह सातधातुओंके भेद हैं, सब मिलाकर ६२ भेद हुए । इनके संसर्गसे दोपोंके ४४१ भेद होते हैं । फिर सिवाय तिरेसठवां भेद और हैं वही आरोग्य | इनमें मलादिके संयोगसे अनन्त भेद होजाते For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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