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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० १२ सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । (१२१) - - अपने प्रमाणसे अधिक होतो तीन भेद होतेहैं । (९) वातबृद्ध, कफ वृद्धतर पित्तवृद्धतम । यथा-वातवृद्ध, पितवृद्ध, कफबृद्ध । दो। (१०) पित्तवृद्ध, कफबृद्धतर, वातवृद्धतम । दो दोष मिले होतो वह दोषोंका संसर्ग (११) पित्तवृद्ध, वातवृद्धतर, कफवृद्तम । कहलाता है, बह संसर्ग तीन प्रकारका होता (१९) कफवृद्ध, वातवृद्धतर, पित्तवृद्धतम । है किन्तु येही तीन प्रकार दो दो की समान (१३) कफवृद्ध, पित्तबृद्वतर, वातबृद्धतम । वृद्वि से तीन प्रकारके और एक की अधिक- क्षीण दोष के गुण । ता से छः प्रकार के होते हैं इस तरह सव पंचविंशतिमित्येवं बृद्धैःक्षीणैश्च तावतः । मिलाकर नौ प्रकार के होते हैं । जैसे-तुल्य | अर्थ-पूर्वोक्त रीति के अनुसार दोषों की वृद्ध वातपित्त, तुल्य वृद्ध वातकफ, तुल्य वृद्ध वृद्धि के कारण दोषोंके २५ भेद होतेहैं अर्थात् पित्तकफ । एक एक की अधिकतासे जैसे:-- वृद्ध पृथक् दोष तीन प्रकारके, दो २ वृद्ध वातबृद्ध पित्तवृद्धतर, पित्तवृद्ध, वात वृद्वतर, | दोष नौ प्रकार के, वृद्ध सन्निपात तेरह कफवृद्ध पित्तवृद्धतर, पित्तवृद्व कफवृद्धतर प्रकार के । इसी तरह क्षय भेदसे भी पच्चीस कफवृद्ध वातवृद्वतर, वातवृद्ध कफवृद्धतर । भेद होते हैं । ऊपर कहे हुए उदाहरणों में इस तरह नौ भेद हैं। जहां जहां बृद्ध शब्द का प्रयोग है वहां वहां तीनों दोष की वृद्धि का नाम सन्निपात है। क्षीण शब्दका प्रयोग करने से सहजहीमें पचास सन्निपात तेरह प्रकार का होता है इनमें से भेद मालूम होजातेहैं, जैसे:-( पृथक् तीन) दो दोषों के विशेष वद्धि से तीन भेद और क्षीणवात,क्षीणापित्त,क्षीणकफ( दो दोके नौ) एक दोष अधिक वढा हो तो तीन भेद इस तुल्य क्षीण वातपित्त, तुल्य क्षीण पित्तकफ, तरह छः भेद हुए । इसी तरह तीनों दोषों तुल्य क्षीण वातकफ, वातक्षीण पित्तक्षीणतर के समानाधिक्य से एक भेद । और तीनों | पित्त क्षीण वातक्षीणतर, वातक्षीण कफदोषों के तारतम्य के अनुसार छः भेद । क्षीणतर, कफक्षीण वात क्षीणतर, कफइस तरह सब मिलाकर तेरह होतेहैं । जैसे:- क्षीण पित्तक्षीणतर, पितक्षीण कफ क्षीणतर (१) कफवृद्ध बातपित्त अधिक वृद्ध । ( सन्निपात के तेरह ) वातक्षीण पित्तकफ(२) पित्तवृद्ध वातकफ अधिक बृद्ध । क्षीणतर, पित्तक्षीण वातकफक्षीणतर, कफ(३) वात वृद्ध पित्तका अधिक वृद्ध । क्षीण पित्तबातक्षीणतर, बातापित्तक्षीण कफक्षी (४) पित्त कफबृद्ध वात अधिक बृद्ध । णतरतर, पित्तकफक्षीण बातक्षीणतर, बातक (५) वातकफ बृद्ध, पित्त अधिक वृद्ध । फणि पित्तक्षीणतर, तुल्यक्षीण बातपित्तका (६) वातपित्त बृद्ध, कफे अधिक बृद्ध । कामक्षीण पित्तक्षीणतर, बातक्षीणतम, बात. (७) वात पित्त कफ समान बृद्ध । क्षीण कफक्षीणतर पित्तक्षीणतम, पित्तक्षीण (८) वातबृद्ध, पित्त बृद्धतर कफबृद्धतम || कफक्षीणतर, बातक्षीणतम, कफक्षीण बात For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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