SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अ० १३ www. kobatirth.org सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । हैं । इनसबको जान लेनेसे वैद्य कदापि भूल नहीं खाता है, कहा भी है" यः स्वाद्रसविक स्पज्ञः स्याच्च दोषविकल्पवित् । नस मुह्येद्वि काराणां हेतुलिंगोपपत्तिषु " ॥ इतिश्री अष्टांगहृदये भाषाटीकायां द्वादशोऽध्यायः ॥ १२ ॥ त्रयोदशोऽध्यायः । अथातो दोषोपक्रमणीयमध्यायं व्याख्यास्यामः अर्थ - अब हम यहां से दोषोपक्रमणीय ( दोषों की चिकित्सा में हितकारक ) अध्याय की व्याख्या करेंगे । .. वायुका उपचार | | 1 'वातस्योपक्रमः स्नेहः स्वेदः संशोधनं मृदु । स्वाद्वम्ललवणोष्णानि भोज्यान्यभ्यगम निम् वेष्टनं त्रासनं को मद्यं पैष्टिकोडिक । त्रिग्धोष्णावस्तयो बस्तिनियमः सुखशीता दीपनैः पाचनैः सिद्धाःस्नेहाश्चानेक योनयः । विशेषामेव्यपिशितरसतैलानुवासनम् ३ ॥ वितस्य पर्विषः पानं स्वादुशीतैर्विरेचनम् । यातिकषायाणि भोजनान्यौषधानि च सुगंधशीतहृद्यानां गंधानामुपसेवनम् । कण्ठे गुणानां हाराणां प्रणीनामुरसा धृतिः ॥ कर्पूरचन्दनोशीरैरनुलेपः क्षणे क्षणे भवश्चंद्रमाः सौधं हारि गीत हिमो ऽनिलः अयंत्रणसुखं मित्रं पुत्रः संदिग्धमुग्धवाक् । छंदानुवर्तिनो दाराः प्रियाः शीलविभूषिताः शीतांशुधारगर्भागृहाण्युद्यानदीर्घिकाः । तील स्वच्छसलिलाशय सैकते ॥ ८ ॥ सांभोजजलतीरांते कायमाने दुमाकुले । सौम्याभावाःपयःसर्पिर्विरेकश्चविशेषतः अर्थ - वायुकी चिकित्सा करने में प्रथम ही स्नेहपान उचित है, क्योंकि यह सब में श्रेष्ठ है पीछे स्वेदन ( पसीने देना ) कर्मकरै । स्नेहन स्वेदन के पीछे हलका वमन1 विरेचन देव [ तीक्ष्णदेने से वातप्रकोपका डर रहता है ), मधुर अम्ललवण और उष्ण भोजन का पथ्य करावे। हाथ से तेल लग वाकर धीरे२ मर्दन करना, वस्त्र लपेटकर बांध देना, त्रास दिखाना [ शस्त्रधारी मनुष्य, राजकर्मचारी बा अन्य त्रासोत्पादक वस्तु Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२३ ) दिखाना, भय वा शोक से वायु प्रकुपित होता है, त्राससे नहीं ], दसमूलादि के काथ से सेक अर्थात् तरडादेना, पौष्टिक और गौडिक मद्यपान स्निग्ध और उष्णवस्ति ( स्निग्धोष्णवस्ति कहने का यह प्रयोजन है कि रूक्षशीत वस्ति न देवे ) यस्तिनियम ( स्नेहपानादि पांच प्रकारके कार्य करके वस्ति प्रदान ), सुखवृत्ति से रहना, दीपन, पाचन द्रव्यों से सिद्ध किये हुए तिल, चिरोजी, अखरोट आदि का तेल, और विशेष करके पुष्टमांस रस युक्त तेल की अनुवासन वस्ति ये दस उपचार वायुके हैं । पित्तका उपचार | अर्थ - पित्त के प्रकुपित होने पर वृतपान मधुर और शीतल द्रव्य द्वारा विरेचन (जुलाव ), मधुर तिक्तकषाय भोजन, मधुर तिक्त कपाय औषध, सुगंधित, शीतल और मनोहर इत्रादि का सूचना, मोती के हार और लडें कंठ में पहरना, मरकतमणि, चन्द्रकान्तमणि पद्भरागादिक मणि छातीपर धा For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy