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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir : अ० १० सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । (९९) रसकी स्निग्धता। | णरस्रके संयोगसे तीन जैसे लवणतिक्त, लव पट्वम्लमघुराः स्निग्धाः सृष्टविण्मूत्रमारुता। णकटु,लवणकषाय,फिर लवणकोभी छोड देने अर्थ-लवण, अम्ल और मधुर प्रायः स्निग्ध से दो जैसे सिक्तकटु और तिक्तकषाय फिरतिक्त और मलमूत्र और वायुको निकालनेवाले होतेहैं को भी छोड दैनेसे एक कटुकषाय होता है - रसका भारीपन । इसतरह दो दो के संयोग से रसों के पन्द्रह पटोकषायस्तस्माच्च मधुरम्परमं गुरुः ॥ अर्थ लवणरस से कषाय और कषायसे मधु प्रकार होते हैं। ररस भारी होता है। तनि तीन रसोंके संयोगमें मधुररसके संयोग रसका हलकापन । से दसभेद जैसे मधुराम्ललवण, मधुरा लतिक्त, लघुरम्लः कटुस्तस्मात्तस्मादपि च तिक्तकः। मधुरम्लकटु मधुराम्लकषाय, मधुरलवणातक्त अर्थ-अम्लरससे कटु और कटुसे तिक्त ह मधुरलवणकटु, मधुरलवणकषाय, मधुरतिक्त ‘लका होता है। कटु मधुरतिक्तकषाय और मधुर कटुकषाय । रसका संयोग। अम्लरस के संयोग से छः भेद होते हैं संयोगासप्तपंचाशत्कल्पना तु त्रिषष्टिधाम जैसे, अम्ललवणतिक्त, अम्ललवणकटु रसानां यौगिक्त्वेन यथास्थूल विभज्यते । अर्थ- रसोंके आपसके संयोगसे सत्तावन अम्ललवणकषाय, अम्लसिक्तकटु, अम्ल. भेद होते हैं इनकी कल्पना तिरेसठ होती है तिक्तकषाय और अम्लकटुकषाय | लवण रस और अनुरसके संयोगसे रसके अनंत भे रस के संयोग से तीन भेद होते हैं जैसे द होजाते हैं । परन्तु महा स्थूल अर्थात् व्य लवणतिक्तकटु, लवणतिक्तकषाय और लक्तरसोंके अनुसार कल्पना की गई है। बणकटुकषाय । . रससंयोग के भेद । तिक्तरस-के संयोग से तिक्त कटुकषाय एकैकहीनांस्तान्पंच पंच याति रसा द्विके ।। एकही भेद होता है । इस तरह तीन तीन त्रिकेस्वादुर्दशाग्लःषत्रीन्पटुस्तिक्तएककम् | रसों के संयोगवाले वीस भेद होते हैं । चतुष्केषुदशस्वादुश्रतुरोऽम्लम्पटुःसकृत् ॥ चारचार द्रव्यों के संयोग में मधुर रसके पत्रकेष्वेकमेवाम्लो मधुरः पंच सेवते । द्रव्यमेकं षडास्वादमसंयुक्ताश्च षड्साः ४२ संयोग से दस भेद होते हैं जैसे मधुरअम्लअर्थ--रसोंके भेद इसप्रकार हैं,यथाः- मधु- लवण तिक्त, मधुराम्ललवणकटु, मधुराम्लरअम्ल,मधुरलवण, मधुरतिक्त, गधुरकटु, औ लवणकषाय, मधुराम्लतिक्तकटु, मधुरार मधुरकषाय इसतरह मधुरके संयोगसे पांच | म्लकटुकषाय, मधुर लवण तिक्तकटु, मधुर प्रकार होते हैं। फिर मधुररसको छोडकर अ. लवणतिक्तकषाय, मधुरलवणकटुकषाय, म्हरसके संयोगसे चारप्रकार होते हैं जैसे अ | और मधुरतिक्तकटुकषाय । मलळवण, अम्लतिक्त, अम्लकटु, और अम्ल- मधुरको छोडकर अम्लके संयोग से चार कषाय | फिर अम्लको भी छोड दैनेसे लव- | भेद होते हैं जैसे अम्ललवणतिक्तकटु,अम्ल For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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